नई दिल्ली। गजानन, गणपति, लंबोदर, या गणेश, कोई भी नाम हो पर है सर्वोत्तम। क्योंकि ये सारे विघ्न को हरने वाले विघ्नहर्ता हैं। सनातन धर्म में कुछ त्यौहार हर महीने आते हैं, जो कि किसी ईष्ट देव के प्राकट्य दिवस की तिथि को आता है। इनमें शिवरात्रि, प्रदोष और गणेश चतुर्थी मुख्य हैं। इनमें गणेश चतुर्थी के व्रत को हर महीने पड़ने वाले त्योहारों में मुख्य माना जाता है। क्योंकि देवों में प्रथम पूज्य गणेश जी हैं। विघ्नहर्ता के जन्मदिवस से संबंधित इस तिथि में खास नक्षत्र पड़ने से इस व्रत की महत्ता और भी बढ़ जाती है। इस व्रत को करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
वैसे हर मास आने वाली गणेश चतुर्थी को विघ्न विनाशक की उपासना की महत्ता शास्त्रों में वर्णित है। गणेश चतुर्थी हर मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। इस तिथि में व्रत करने से सभी विघ्न भगवान गणेश हर लेते हैं। परन्तु भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का प्राकट्योत्सव के व्रत और पूजन का विशेष महत्व है। इसके लिए व्रत रखकर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को दुर्वा (घास) और मोदक (लड्डू) चढ़ाने चाहिए। इससे सभी मनोरथ पूरे होते हैं और सभी पापों का विनाश होता है।
गणपति गणेश के जन्म की एक पौराणिक कथा भी प्रकाश में आती है। शिवपुराणके अन्तर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ खण्ड में यह वर्णन आता है। माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया। भगवान भोलेनाथ शिव शंकर जब माता पार्वती से मिलने के लिये प्रवेश करना चाहा रहे थे, तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्तत: भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर भगवान विष्णु उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव हाथी का सिर काटकर ले आए। भगवान भोले नाथ ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
गजानन गणपति का गणेश चतुर्थी पर पूजन करने और आराधना करने से अभीष्ठ फलों की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने की विधि भी श्री गणेश के अन्य व्रतों के समान ही सरल है। गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास में कृ्ष्णपक्ष की चतुर्थी में किया जाता है। इस व्रत की यह विशेषता है, कि यह व्रत सिद्धि विनायक श्री गणेश के जन्म दिवस के दिन किया जाता है। सभी 12 चतुर्थियों में माघ, श्रावण, भाद्रपद और मार्गशीर्ष माह में पडने वाली चतुर्थी का व्रत करना विशेष कल्याणकारी रहता है। तो जानते है कैसे की जाये गणपति की गणेश चतुर्थी पर पूजा
1- चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
2- श्रीगणेश की पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें। तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें।
3- फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से श्रीगणेश को स्नान कराके विधिवत तरीके से पूजा करें। गणेश पूजन के दौरान धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना करें।
4- श्री गणेश को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्डू तथा मोदक का भोग लगाएं। ‘ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित है।’
5- सायंकाल में व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुनें और सुनाएं। तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें।
6- विधिवत तरीके से गणेश पूजा करने के बाद गणेश मंत्र ‘ॐ गणेशाय नम:’ अथवा ‘ॐ गं गणपतये नम: की एक माला (यानी 108 बार गणेश मंत्र का) जाप अवश्य करें।
7- इस दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान करें। तिल-गुड़ के लड्डू, कंबल या कपडे़ आदि का दान करें।
सभी 12 चतुर्थियों में माघ, श्रावण, भाद्रपद और मार्गशीर्ष माह में पडने वाली चतुर्थी का व्रत करना विशेष कल्याणकारी रहता है। लेकिन भाद्रपद में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी का शास्त्रीय और पौराणिक महत्व है, तो गजागन गणपति की पूजा इस गणेश चतुर्थी को करके अपने अभीष्ठ फल की प्राप्ति करें।