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जिला अस्पताल है कोई धर्मशाला नही : फतेहपुर

77777 जिला अस्पताल है कोई धर्मशाला नही : फतेहपुर

फतेहपुर। जिला अस्पताल नही है धर्मशाला यह कहना है जिला अस्पताल के डॉक्टरों का। सरकार कितनी बदली मगर नहीं बदला सरकारी आकाओ का निजाम। वह अस्पताल जिसमे मरीजों के इलाज की हर सुविधा मुहैय्या कराने के लिए सरकार गंभीर हैं। लेकिन सरकारी अस्पताल का निजाम ही कुछ अलग थलग हैं। कहने को तो सारी सुविधाएं हैं यहां,लेकिन गरीबो के लिए नही। इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। यहां दूर दराज से गरीब अपने इलाज के लिए यह सोच कर आते है , की उनको यहां पर सरकारी सेवाएं मिल जाऐंगी। वाह रे हमारे धरती के भगवान इनको अब शायद मरीजों से हमदर्दी नहीं रह गयी।इनकी आदत आराम परस्ती की पड़ गयी है।यह हमारे सूबे के मुखिया योगी जी का स्वास्थ विभाग हैं। यह हम नहीं कह खुद डॉक्टरों के इस बरताव को देख कर अंदाजा लगा सकते है।

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फतेहपुर जिले खखरेरू कसबे निवासी मालिकुन निशा की पुत्री नौशीन बानो जिसकी तबियत एक लम्बे समय से खराब हैं। जनपद से लेकर गैर जनपदों में इलाज चला मगर तबियत में कोई सुधार नहीं आया पैसे के अभाव के कारण मालिकुन निशा अपने गाँव आ गयी। और अपनी बेटी को लेकर गाँव से जिला अस्पताल आ गयी इस उम्मीद के साथ के डाक्टरों को दिखा कर बेटी का बेहतर इलाज इलाज करा सके गी । मगर अपनी बेटी को लेकर जब डाक्टरों को दिखाने गयी तो डाक्टर ने इलाज करने से ही मना कर दिया। धरती के भगवान कहे जाने वाले डाक्टर ने उसको यह कह कर भगा दिया की यह कोई धरम शाला नहीं है।जहाँ पहले इसका इलाज चल रहा वही लेकर जाओ । यहां तुम्हारे मरीज का इलाज नही होगा।

मिडिया के दखल देने के बाद भर्ती करने को तैयार हुवे। और नौशीन की तीमारदार उसकी मां को वीलचेयर देकर कहा की जाओ जाकर मरीज को अन्दर लेकर आओ ।यानि मां खुद अपनी बेटी को लेकर आये कोई कर्म चारी नही। फतेहपुर जिले का जिला अस्पताल राम भरोसे चल रहा है। कहने को तो मरीजो की देख रेख के लिए डॉक्टर और नर्स का भारी भरकम स्टॉप मौजूद है। मगर हकीकत कुछ और ही है मरीजो के इलाज की जिम्मेदारी डॉक्टर की और उनकी देख रेख की जिम्मेदारी स्टॉप की होती है।
लेकिन इन डॉक्टरों की ड्यूटी सिर्फ हाजरी रजिस्टर तक सिमित रहती है। वही दूसरी तरफ साहबसी गांव से तारा देवी जो अपनी बहु के साथ उसके बच्चे को दिखाने आई जिसका पैर पैदाशी टेढ़ा होने के कारण उसपर प्लास्टर चढ़ाया गया था। अस्पताल में प्लास्टर नही काटा गया। बल्कि यह जिम्मेदारी परिजनों को दे दी जाती है। कहने को यहां स्ट्रेचर है, लेकिन मरीज को आपको अपने कन्धो पर ही लेकर जाना होगा। इतनी बदहाली के बाद भी अस्पताल प्रशासन संजीदा नही। इस बारे में जिला अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर आशीष से बात की गयी तो वह मरीज के तीमारदार को भगाये जाने को नकारते रहे ।वही सी० एम०ओ० विनय कुमार पांडेय से जब इस सम्बन्ध में बात की गई तो जांच करा कार्रवाई की बात कही। एक लंबे समय से यह बीमार अस्पताल कब स्वस्थ होता है। कब अधिकारियों की नीन्द टूटेगी यह तो समय ही बताएगा

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