हिन्दू धर्म के अनुसार, सावन का महीना पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है ,, और सावन के महीने का सबसे प्रमुख त्योहार नाग पंचमी को माना गया है। आज नाग पंचमी है। ये पर्व भगवान शिव और नाग देवता से जुड़ा हुआ है।
पूजा करने का समय
वर्ष 2021 में ये पंचमी तिथि गुरुवार, 12 अगस्त दोपहर 3 बजकर 28 मिनट से आरंभ होगी और अगले दिन शुक्रवार, 13 अगस्त दोपहर 1 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। वैदिक ज्योतिष में पंचमी तिथि के स्वामी नाग होते हैं। इसलिए भी इस दिन नागों की विशेष रूप से पूजा किये जाने का विधान है।
धर्मों में नागपंचमी का महत्व
नाग पंचमी का उल्लेख आपको कई पौराणिक शास्त्रों में भी मिल जाएगा। उन्हीं में से कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस विशेष दिन नागदेव की पूजा करता है । उसे अपनी कुंडली में मौजूद राहु और केतु से संबंधित हर प्रकार के दोष से तो मुक्ति मिलती ही है, साथ ही वह व्यक्ति काल सर्प दोष से भी मुक्ति पाने में सफल रहता है। इसके अलावा वैदिक ज्योतिष में भी, जातक को सांप का डर और सर्पदंश से मुक्ति दिलाने के लिए भी, नाग पंचमी के दिन कालसर्प योग के निवारण हेतु पूजा-अनुष्ठान किए जाने का विधान है। ऐसे में इस नागपंचमी के दिन, आप भी अपनी राशि के अनुसार पूजा और उपाय कर राहु-केतु एवं कुंडली में मौजूद हर प्रकार के कालसर्प योग के अशुभ प्रभाव को दूर कर, भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
नाग पंचमी की कथा
इस कथा के अनुसार नागों के राजा वासुकी अपने सगे सम्बन्धियों और परिवार के साथ पाताल लोक में रहते थे। भगवान शिव के अनन्य भक्त वासुकी उनकी पूजा में लीन रहा करते थे। धार्मिक मान्यता है कि शिवलिंग की पूजा का प्रचलन नाग जाति ने ही शुरू किया था। समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकी ने मेरु पर्वत से लिपटकर रस्सी का कार्य किया था। एक तरफ दानव और एक तरफ से देवता उन्हें पकड़ कर खींच रहे थे। इस दौरान नागराज बुरी तरह से घायल हो गए थे। संसार के कल्याण हेतु समुद्र मंथन के कार्य में इनके अतुलनीय सहयोग से भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्हें अपने गले में सुशोभित करने का वरदान दिया।
शिव के गले पर विराजमान हैं नागराज वासुकी
आपको बता दें कि नागराज वासुकी भगवान शिव के गले पर विराजमान होकर उनकी शोभा बढ़ा रहें हैं. वहीं नागराज वासुकी के ही भाई शेषनाग भगवान विष्णु की शैय्या स्वरूप में विद्यमान हैं। नागपंचमी के दिन नागों की पूजा से भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं और उन्हें मनवांछित फल प्राप्त होने का वरदान देते हैं।