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नहाय-खाय के साथ शुरू होगा छठ महापर्व, जानें लोक आस्था के इस चार दिवसीय अनुष्ठान के क्या है महत्व

छठ पूजा नहाय-खाय के साथ शुरू होगा छठ महापर्व, जानें लोक आस्था के इस चार दिवसीय अनुष्ठान के क्या है महत्व

लोक आस्था का महापर्व यानी महापर्व का नहाए-खाए के साथ आज से शुभ आरंभ होने जा रहा है। लोक आस्था का यह महापर्व बिहार, पूर्वी यूपी, झारखंड में मुख्य तौर पर मनाया जाता है। जिसको लेकर लोगों के मन में काफी उत्सुकता रहती है। इस पावन पर्व को लोग श्रद्धा भाव के साथ अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए करते हैं व छठ मैया को प्रसाद चढ़ाते हैं। 

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लोक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व पर छठ मां का व्रत रखने वाली व्रती डूबते सूरज को अर्घ देती है। साथ ही अगले दिन उगते सूरज को अर्घ देकर अपने निर्जला उपवास को समाप्त करती हैं।

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आज से छठ महापर्व का होगा शुभारंभ

छठ महापर्व का शुभारंभ नहाए-खाए के साथ शुरू होता है। इस वर्ष आज यारी नवंबर 2021 से नहाए खाए के साथ छठ महापर्व का आरंभ होगा। 4 दिन तक चलने वाले इस महापर्व का आरंभ कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होता है। इस दिन व्रती किसी तलाब व नदी में जाकर स्नान करती है और पूरे दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन ग्रहण करती है।

छठ का दूसरा दिन खरना

छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है इस दिन छठ व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखती हैं और रात्रि के समय चावल की खीर और रोटी छठ मैया को अर्पित कर इसका प्रसाद ग्रहण करते हैं। साथ ही सभी परिजनों व आस पड़ोस में वितरित करती है।

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छठ महापर्व की महत्वपूर्ण तिथि

  • 8 नवंबर 2021 : नहाए-खाए ( कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि)
  • 9 नवंबर 2021 : खरना (कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि)
  • 10 नवंबर 2021 : डूबते सूरज को अर्घ्य ( कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि)
  • 11 नवंबर 2021: उगते सूरज को अर्घ्य (कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि)

छठ महापर्व का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लगातार चार दिनों तक चलने वाली इस छठ महापर्व कठिन तपस्या के रूप में देखा जाता है। मुख्य तौर पर इस व्रत को महिलाएं करती हैं लेकिन कुछ परिस्थितियों में पुरुष भी इस को करते हुए दिखाई देते हैं। छठ महापर्व के महत्व की बात करी थी इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं मान्यता के अनुसार राम के राज्याभिषेक के बाद अयोध्या में राम राज्य की स्थापना के लिए भगवान राम और मैया सीता ने कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर प्रत्यक्ष रूप से भगवान सूर्य देव की आराधना की थी और अगले दिन सप्तमी तिथि को सूर्य देव ने उन्हें दर्शन देकर रामराज स्थापित होने का आशीर्वाद दिया कहा जाता है तभी से कार्तिक माह की छठी तिथि को छठ पर मनाया जाता है। 

छठ पूजा 2 नहाय-खाय के साथ शुरू होगा छठ महापर्व, जानें लोक आस्था के इस चार दिवसीय अनुष्ठान के क्या है महत्व

वहीं कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार राजा प्रियवद की कोई संतान नहीं थी तब उनके आग्रह पर महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करानी और उनकी पत्नी को यज्ञ में आहुति देने के लिए खीर बनाने का निर्देश दे। यज्ञ के पूरा होने की बाद इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन यह पुत्र मृत पैदा हुआ। इसके बाद राजा प्रियवद अपने पुत्र को लेकर शमशान गए और वहां विलाप करने लगे। उनके विलाप को सुनकर वह उस वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई। और उन्होंने कहा कि एसएसटी की मूल प्रवृत्ति की छठी अंशु मुझे षष्टि कहा जाता है। राजन तुम मेरा व्रत करो निश्चित ही तुम्हारी पुत्र इच्छा मां षष्टि के व्रत से पूरी होगी। साथ ही लोगों को भी इस व्रत के लिए प्रेरित करो।

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