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उगते सूरज को अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का होगा समापन, जानें उगते सूरज को अर्घ्य देने का क्या है? महत्व

chhatha bpi 20180316395 उगते सूरज को अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का होगा समापन, जानें उगते सूरज को अर्घ्य देने का क्या है? महत्व

लगातार तीन दिन से चल रहे छठ महापर्व का आज यानी 11 नवंबर को उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ समापन हो जाएगा। इस वर्ष छठ महापर्व का आरंभ 8 नवंबर 2021 नहाए-खाए के साथ शुरू हुआ था। चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समापन होता है। 

छठ महापर्व के इन चारों ही दिन का खास महत्व है। इस पूरे महापर्व में व्रती महिला एवं पुरूष 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं और सप्तमी तिथि को उगते सूरज को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करते हैं।

उगते सूरज को अर्घ्य देने का क्या है महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शाम के वक्त सूर्य देवता अपनी अर्धांगिनी देवी प्रत्युषा के साथ समय बिताते हैं। यही कारण है कि छठ महापर्व की तीसरे दिन डूबते सूरज को अर्घ्य देते वक्त सूर्य देव के साथ देवी प्रत्युषा की भी उपासना की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से व्रती महिला व पुरुष की सभी मनोकामनाएं जल्द पूरी हो जाती है। साथ ही एक मान्यता यह भी है कि डूबते सूरज को अर्घ्य देने से जीवन में आई सभी कठिनाइयों, स्वास्थ्य समस्याएं डूबते सूरज के साथ समाप्त हो जाती है।

वही छठ माता के अंतिम दिन उगते सूरज को अर्घ देने का भी काफी महत्व है। इस दिन छठ घाट पर सुबह सवेरे छठ व्रती और उसका पूरा परिवार घाट पर पहुंचता है और वह भगवान सूर्य देव और छठ मैया की उपासना करता है। 

कब शुरू हुई ये परंपरा

पौराणिक मान्यताओं व कथाओं के अनुसार छठ मैया को ब्रह्मा की मानस पुत्री और भगवान सूर्य देव की बहन माना जाता है। लोगों का मानना है कि छठ मैया निसंतान को संतान की प्रप्ति करती है और संतान की लंबी आयु के लिए पूजे जाने वाले पावन व्रत है। एक मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की गर्भ में पल रहे शिशु का वध कर दिया गया था तब उस शिशु को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा को कार्तिक मास षष्टी के व्रत करने की सलाह दी थी।

छठ महापर्व से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लगातार चार दिनों तक चलने वाली इस छठ महापर्व कठिन तपस्या के रूप में देखा जाता है। मुख्य तौर पर इस व्रत को महिलाएं करती हैं लेकिन कुछ परिस्थितियों में पुरुष भी इस को करते हुए दिखाई देते हैं। छठ महापर्व के महत्व की बात करी थी इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं मान्यता के अनुसार राम के राज्याभिषेक के बाद अयोध्या में राम राज्य की स्थापना के लिए भगवान राम और मैया सीता ने कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर प्रत्यक्ष रूप से भगवान सूर्य देव की आराधना की थी और अगले दिन सप्तमी तिथि को सूर्य देव ने उन्हें दर्शन देकर रामराज स्थापित होने का आशीर्वाद दिया कहा जाता है तभी से कार्तिक माह की छठी तिथि को छठ पर मनाया जाता है। 

वहीं कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार राजा प्रियवद की कोई संतान नहीं थी तब उनके आग्रह पर महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करानी और उनकी पत्नी को यज्ञ में आहुति देने के लिए खीर बनाने का निर्देश दे। यज्ञ के पूरा होने की बाद इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन यह पुत्र मृत पैदा हुआ। इसके बाद राजा प्रियवद अपने पुत्र को लेकर शमशान गए और वहां विलाप करने लगे। उनके विलाप को सुनकर वह उस वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई। और उन्होंने कहा कि एसएसटी की मूल प्रवृत्ति की छठी अंशु मुझे षष्टि कहा जाता है। राजन तुम मेरा व्रत करो निश्चित ही तुम्हारी पुत्र इच्छा मां षष्टि के व्रत से पूरी होगी। साथ ही लोगों को भी इस व्रत के लिए प्रेरित करो।

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