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जानें जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व, किस मुर्हत में करें पूजा उपासना

varat जानें जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व, किस मुर्हत में करें पूजा उपासना

आज यानि 29 सितबंर को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जायेगा।  ये व्रत  हर साल अश्विन महिने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है।  बता दें कि इस व्रत को  जिउतिया या फिर जितिया व्रत भी कहा जाता है।  इस व्रत को पुत्र ​की बी उम्र,  आरोग्य और सुखी जीवन के लिए किया जाता है। इस दिन मां व्रत रखकर अपने पुत्र की रक्षा करती हैं।

आपको बता दे कि इस व्रत को भी तीज की  तरह ही किया जाता है, इस वर्त को निर्जला रखा जाता है। और ये तीन दिन तक किया जाता है।  सप्तमी तिथि , अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि और उनकी  उन्नत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद नवमी तिथि को  अगले दिन व्रत पूरा होता है

शुभ मुहूर्त:

आपको बता दे कि  जितिया व्रत की पूजा शाम के समय में  की जाती है सूर्यास्त के बाद । 29 सितंबर ​को शाम 6 बजकर 9 मिनट पर सूर्यास्त होगा और इसके बाद प्रदोष काल शुरु हो जायेगा। अष्टमी तिथि का  समय रात 8:29 बजे तक है। जितिया व्रत की पूजा आप  शाम 6:09 बजे से रात 8:29 बजे तक कर सकते हैं।

पौराणिक कथा:

चलिये जान लेते हैं कि इस व्रत से क्या कथा जुड़ी है, बता दें कि जीवित्पुत्रिका व्रत को महाभारत काल से  जोड़ा जाता है। युद्ध में पिता की मृत्यु के बाद जब अश्वत्थामा काफी गुस्से में हो गये ।

तो बदलना लेने के लिये वो पांडवों के शिविर में घुस गये। शिविर के अंदर पांच व्यक्ति सो रहे थे। उनको अश्वत्थामा ने पांडव समझकर मार डाला।

कहा जाता है कि वो  सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। इसके बाद  अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उनसे उनकी दिव्य मणि छीन ली।

गुस्से में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला। जिसके बाद भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके बच्चे को फिर से जिंदा कर दिया।

बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया

भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जिंदा होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से संतान की लंबी उम्र और रक्षा के लिये इस व्रत को किया जाता है।

 

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