रावण को दशानन के नाम से भी जाना जाता है, बता दें कि रावण को शात्रों का ज्ञान था,रावण बलशाली, राजनीतिज्ञ और महापराक्रमी था। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि रावण के दस सिर थे। आज हम उसी के बारे में आपको बताने जा रहे हैं।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने कठोर तप किया:
रावण ने कई सालों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया, लेकिन भगवान शिव रावण की तपस्या से प्रसन्न नहीं हुए। जिसके बाद रावण ने अपना सिर काटकर भगवान भोलेनाथ को भेंट कर दिया। लेकिन औसा करने के बाद भी रावण की मृत्यु नहीं हुई। उसकी जगह पर रावण का दूसरा सिर आ गया। ऐसे ही रावण एक-एक करके अपना सिर भगवान शिव को चढ़ाता गया।
रावण को भगवान शिव का भक्त कहा जाता था:
जिसके बाद जब वो दसंवी बार अपना सिर भगवान को चढाने लगा जिसके बाद भगवान शिव वहां प्रकट हो गए। भगवान शिव रावण की ऐसी भक्ति देख बहुत प्रसन्न हुए, बता दें कि रावण को भगवान शिव का भक्त कहा जाता है।
रावण के दस सिर दस बुराइयों के प्रतीक:
बता दें कि रावण के दस सिर दस बुराइयों के प्रतीक माने जाते हैं। पहला काम, दूसरा क्रोध, तीसरा लोभ, चौथा मोह, पांचवां मादा गौरव छठां ईर्ष्या, सातवां मन, आठवां ज्ञान, नौवां चित्त और दसवां अहंकार।
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि रावण बहुत विद्वान था, उसके पास 6 दर्शन और 4 वेद कंठस्थ थे, इसलिए उसका नाम दसकंठी भी था। बाद दसकंठी को ही लोगों ने दस सिर मान लिया।
रावण को संगीत में थी रुचि:
रावण में अच्छे गुण भी थे, कहा जाता है कि रावण एक अच्छा वीणा वादक और मृदंग वादक भी था, कहा जाता है कि रावण वीणा काफी पसंद करता था। और इसी वजह से उसके ध्वज में वीणा का चिह्न बना हुआ था।
रावण वध:
आपको बता दे कि रामचरितमानस बताया गया है कि वो भगवान राम से युद्ध के लिए आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को निकला था, हर दिन उसका एक सिर कट जाता था। और आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी को उसका वध हुआ। इस वजह से दसवीं के दिन दशहरा मनाया जाता हैं।