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Dhanteras 2021 : आखिर क्यों मनाया जाता है धनतेरस? जानिए क्या कहती है पौराणिक मान्यताएं

dhanteras pooja5 Dhanteras 2021 : आखिर क्यों मनाया जाता है धनतेरस? जानिए क्या कहती है पौराणिक मान्यताएं

Dhanteras 2021 ।। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन अक्षुरो और देवताओं के बीच हो रहे समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस कारण इस तिथि को धनतेरस व धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। 

वहीं भारत सरकार ने इस तिथि को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। क्योंकि माना जाता है कि भगवान धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक थे। 

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जैन धर्म में धनतेरस का क्या है महत्व 

जैन धर्म में धनतेरस को धन्य तेरस और ध्यान तेरस कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान महावीर तीसरे और चौथे ध्यान योग के लिए निरोध के लिए चलें गए थे। तीसरे दिन ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए भगवान महावीर दिवाली के दिन निवार्ण को प्राप्त हुए। 

धनतेरस से जुड़ी मान्यताएं

हिंदू धर्म की पौराणिक कथा के अनुसार एयरटेल भगवान धन्वंतरी समुद्र मंथन के दौरान अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। यही कारण है कि इस धातु के बर्तन खरीदे जाते हैं। वहीं कहीं-कहीं यह भी मान्यता प्रचलित है कि इससे धन खरीदने से इसमें 13 गुना की वृद्धि होती है। 

वहीं कुछ लोग इस दिन धनिया के बीज से खरीदते हैं जिसे दिवाली के पश्चात वह अपने बाग-बगीचों व खेतों बोते हैं।

साथ ही इस दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा प्रचलित है। कहा जाता है कि चांदी चंद्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है। जिससे मन में संतोष रूपी धन का उपवास होता है। और आप सभी जानते ही हैं कि संतोष से बड़ा धन है। और जिस व्यक्ति के पास संतोष है। वह स्वस्थ, सुखी और दुनिया में सबसे धनवान व्यक्ति है।

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वही भगवान धन्वंतरी को देवताओं का चिकित्सक ही माना जाता है ऐसे में इस दिन अच्छे स्वास्थ्य व सेहत की कामना के लिए भी भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।

साथ में धनतेरस के दिन लोग दिवाली की पूजा के लिए मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा भी खरीदते हैं।

हालांकि इन सभी बातों का उल्लेख पवित्र ग्रंथों में नहीं है यह केवल लोक कथाएं हैं।

पौराणिक कथा

धनतेरस किस शाम को घर के मुख्य द्वार के बाहर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसके पीछे एक लोककथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक समय में एक राजा हुआ करता था जिसका नाम हेम था। राजा हेम को दैव कृपा से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म के बाद जब ज्योतिषियों ने कुंडली बनाई तो पता चला कि बालक के विवाह के 4 दिन पश्चात उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस बात को लेकर राजा काफी चिंतित और उसने राजकुमार को एक ऐसी जगह भेजने का निर्णय लिया जहां उन पर स्त्रियों की परछाई ना पड़े। लेकिन एक दिन डेज़ी योग के कारण एक राजकुमारी वहां से गुजर रही थी। राजकुमार और राजकुमारी एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए। और उन दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया।

विवाह के 4 दिन पश्चात विधि विधान के अनुसार यमदूत राजकुमार के प्राण लेने पहुंच गए जब यमदूत राजकुमार के प्राण लेने जा ही रहे थे उस वक्त नवविवाहित पत्नी का विलाप सुनकर उनका ह्रदय पसीज गया लेकिन उन्हें विधि के अनुसार अपना कार्य पूर्ण करना था। यमदूत ने यमराज से विनती की यमराज क्या ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्ति पा सके। यमदूत के ऐसा आग्रह करने पर यमराज बोले हेतु अकाल मृत्यु तो मनुष्य के कर्मों की गति इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं तो सुनो!

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में जो प्राणी मेरे नाम से पूजन कर दीपमाला करेगा और दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है। उसे अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलेगी। यही कारण है कि धनतेरस को  लोग घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते है।

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