अहोई अष्टमी ।। भारत हमेशा से ही अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां पर अलग-अलग जाति और भाषाओं के लोग रहते हैं इसीलिए यहां के लोगों का पौराणिक कथाओं और व्रत पर विश्वास भी अधिक है। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भारत में महिलाएं अहोई अष्टमी का त्योहार मनाती है। ये त्योहार करवाचौथ के 4 दिन बाद और दीवाली पूजन से ठीक 8 दिन पहले मनाया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत की पूरे उत्तर भारत में काफी मान्यता है। इस दिन पुत्रवती महिलाएं अपने बच्चों के लिए निर्जला व्रत रखकर उनकी खुशहाली व उन्नति की प्रार्थना करती है और शाम को चांदनी रोशनी में अहोई अष्टमी की पूजा शुरु करती है। इसकी साथ ही ऐसा मान्यता है कि इस दिन पुत्रवती महिलाएं दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाकर उनकी पूजा करती है और उसके बाद तारों को अर्घ्य देती है।
जानिए अहोई अष्टमी की व्रत कथा
अहोई का मतलब होता है अनहोनी को होनी बनाना। माना जाता है कि प्राचीन समय में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीवाली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं और ननद मिट्टी लाने जंगल गई। साहुकार की बेटी जिस जगह मिट्टी खोद रही थी उस जगह पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी खोदते समय गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया, जिससे गुस्से में आकर स्याहू ने बोला मैं तुम्हें बांझ होने का श्राप देती हूँ। इस तरह की बात सुनकर वो अपनी सभी भाभियों से विनती करती है कि वो इस श्राप को अपने ऊपर ले ले जिसके बाद उसकी सबसे छोटी भाभी उसके आग्रह को स्वीकार कर लेती है और कुछ दिन बाद ही उसकी सभी संताने मर जाती है।
जब उसके सातों बच्चों की अकारण मृत्यु हो जाती तो वो इसका पता लगाने के लिए पंडित को बुलाती है। जिसके बाद पंडित के कहे अनुसार वो सुरही गाय की पूजा करती है। उसकी भक्ति को देखकर सुरही गाय बहुत खुश हो जाती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। काफी चलके ने बाद दोनों एक जगह थोड़ा विश्राम करते है इतने में ही छोटी बहू की नजर एक सांप पर पड़ती है। सांप जैसे ही गरुड़ पंख के बच्चे को डंसने जाता है वो उसे मार देती है।
लेकिन गरुड़ पंख को फैला हुआ खून देखकर ऐसा लगता है कि उसके बच्चे को छोटी बहू ने मार दिया और वो काफी दुखी होती है। गुस्से में वो छोटी बहू को चोंच से नुकसना पहुंचाने लगती है। काफी समय बाद जब उसे अपने बच्चे के जिंदा होने की खबर मिलती है तो खुशी से फूंली नहीं समाती। जिसके बाद वो उन्हें खुद सुरही गाय सहित छोटी बहू को स्याहू के पास ले जाती है। स्याहू उसकी सेवा से खुश हो जाती है और उसे 7 बेटो और 7 बहुओं का वरदान देती है जिसके बाद उसका घर हराभरा हो जाता है। जिसके बाद से अहोई अष्टमी की पूजा की जाती है।
व्रत-विधि
अहोई अष्टमी पर औरतें अपने बच्चों की लंबी उमर के लिए अहोई माता की पूजा-अर्चना करती हैं। पूजा के समय घर को गोबर से लीपकर कलश की स्थापना की जाती है। कुछ महिलाएं इस व्रत में चांदी की अहोई माता की भी बनवाती हैं। कलश स्थापना करने के बाद अहोई माता को दूध और चावल का भोग लगाकर कथा का आरम्भ किया जाता है। उत्तर भारत के कुछ इलाकों में घर में पुए बनाकर भी माता का पूजन किया जाता है। पूजा के बाद घर के बड़े-बुर्जुगों का आर्शीवाद लेना शुभ माना जाता है।