शख्सियत

…और इस तरह चंद्रशेखर कहलाए ‘आजाद’

Chandrashekhar Azad 3 ...और इस तरह चंद्रशेखर कहलाए 'आजाद'

नई दिल्ली। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों में चन्द्रशेखर आजाद का नाम सदा अग्रणी रहेगा। उनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को ग्राम माबरा (झाबुआ, मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनके पूर्वज गांव बदरका (जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे, पर अकाल के कारण इनके पिता श्री सीताराम तिवारी माबरा में आकर बस गये थे।

Chandrashekhar Azad 3 ...और इस तरह चंद्रशेखर कहलाए 'आजाद'

…और ऐसे कहलाए आजाद:-

बचपन से ही चन्द्रशेखर का मन अंग्रेजों के अत्याचार देखकर सुलगता रहता था। किशोरावस्था में वे भागकर अपनी बुआ के पास बनारस आ गये और संस्कृत विद्यापीठ में पढ़ने लगे। बनारस में ही वे पहली बार विदेशी सामान बेचने वाली एक दुकान के सामने धरना देते हुए पकड़े गये। थाने में हुई पूछताछ में उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतन्त्रता और घर का पता जेलखाना बताया। इस पर बौखलाकर थानेदार ने इन्हें 15 बेंतों की सजा दी। हर बेंत पर ये ‘भारत माता की जय’ बोलते थे। तब से ही इनका नाम ‘आजाद’ प्रचलित हो गया।

Chandrashekhar Azad 2 ...और इस तरह चंद्रशेखर कहलाए 'आजाद'

अंग्रेजी शासन को दी खुली चुनौती:-

आगे चलकर आजाद ने सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से देश को आजाद कराने वाले युवकों का एक दल बना लिया। भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, बिस्मिल, अशफाक, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ सान्याल, जयदेव आदि उनके सहयोगी थे। आजाद और उनके सहयोगियों ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ से सहारनपुर जाने वाली रेल को काकोरी स्टेशन के पास रोककर सरकारी खजाना लूट लिया। यह अंग्रेज शासन को खुली चुनौती थी, अतः सरकार ने क्रान्तिकारियों को पकड़ने में पूरी ताकत झोंक दी पर आजाद को पकड़ना इतना आसान नहीं था। वे वेष बदलकर क्रान्तिकारियों के संगठन में लगे रहे। ग्वालियर में रहकर इन्होंने गाड़ी चलाना और उसकी मरम्मत करना भी सीखा।

जनता के बीच फैलाए जा रहे भ्रम को किया दूर:-

17 दिसम्बर, 1928 को इनकी प्रेरणा से ही भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु आदि ने लाहौर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के ठीक सामने सांडर्स को यमलोक पहुंचा दिया। इसके बाद पुलिस बौखला गयी पर क्रान्तिवीर अपने काम में लगे रहे। कुछ समय बाद क्रान्तिकारियों ने लाहौर विधानभवन में बम फेंका। यद्यपि उसका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था। बम फेंककर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने आत्मसमर्पण कर दिया। उनके वीरतापूर्ण वक्तव्यों से जनता में क्रान्तिकारियों के प्रति फैलाये जा रहे भ्रम दूर हुए। दूसरी ओर अनेक क्रान्तिकारी पकड़े भी गये। उनमें से कुछ पुलिस के अत्याचार को सह नहीं पाये और मुखबिरी कर बैठे। इससे क्रान्तिकारी आन्दोलन कमजोर पड़ गया।

Chandrashekhar Azad 1 ...और इस तरह चंद्रशेखर कहलाए 'आजाद'

इस तरह हुए आजाद:-

27 फरवरी, 1931 का दिन था जब पुलिस को किसी मुखबिर से समाचार मिला कि आज प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद किसी से मिलने वाले हैं। पुलिस ने समय गँवाये बिना पार्क को घेर लिया। पार्क में आजाद एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने साथी की प्रतीक्षा ही कर रहे थे की जैसे ही उनकी निगाह पुलिस पर पड़ी तो उन्होने पिस्तौल निकाली और पेड़ के पीछे छिप गये। कुछ ही देर में दोनों ओर से गोली चलने लगी।

इधर चन्द्रशेखर आजाद अकेले थे और उधर कई जवान। जब आजाद की पिस्तौल में एक गोली रह गयी, तो उन्होंने देश की मिट्टी अपने माथे से लगायी और उस अन्तिम गोली को अपनी कनपटी में मार लिया। उनका संकल्प था कि वे आजाद ही जन्मे हैं और मरते दम तक आजाद ही रहेंगे। उन्होंने इस प्रकार अपना संकल्प निभाया और जीते जी पुलिस के हाथ नहीं आये।

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