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इंसानियत शर्मसार- बच्ची का शव ठेले पर लाने को मजबूर हुए परिजन

WhatsApp Image 2017 07 03 at 1.03.55 PM इंसानियत शर्मसार- बच्ची का शव ठेले पर लाने को मजबूर हुए परिजन

देश में आए दिन इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटनाए सामने आ रही है। देश में आए दिन अस्पताल प्रशासन के कारण मानवता को शर्मसान किया जा रहा है। कभी साइकिल पर, कभी कंधों पर लाद कर तो कभी ठेले पर, परिजन शव को अपने घर ले जाने पर मजबूर हो रहे हैं। पैसों की कमी के चलते परिजनों को मृतक का शव उनके घर ले जाने के लिए एंबुलेंस मुहैया नहीं कराई जाती है। इसी कड़ी में अब एक और मामला  छत्तीसगढ़ से सामने आया है। मुख्यमंत्री रमन सिंह के विधानसभा क्षेत्र राजनंदगांव में मानवता को शर्मसान करने देने वाली घटना सामने आई है। पूरा मामला राजनंदगांव का है। जहां एक परिवार अस्पताल से एंबुलेंस मुहैया ना कराए जाने के बाद मृतक बच्ची का शव ठेले पर ले जाने को मजबूर हो गया।

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अस्पताल प्रशासन की दादागिरी करने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई बार ऐसे मामले सुर्खियों का केंद्र बन चुके हैं। इससे पहले भी देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के फिरोजबाद से भी देखने को मिली थी। जहां ट्रेन की चपेट में आने के बाद एक महिला की मौत हो गई थी। पुलिस ने जब शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल में भेजा तो वापस घर लाने के लिए अस्पताल द्वारा एंबुलेंस मुहैया नहीं कराई गई। कारणवश परिजनों को रिक्शें में लेकर जाना पड़ा। इससे पहले भी यूपी के कौशांबी जिले में एक मामा को अपनी भांजी का शव साइकिल पर लाने पर मजबूर होना पड़ा। यहां पर भी अस्पताल प्रशासन की दादागिरी के चलते परिजनों को एंबुलेंस मुहैया नहीं कराई गई। मृतक के मामा का संबंधित मामले में कहना था कि अस्पताल प्रशासन के सामने कई बार हाथ जोड़ने के बाद भी अस्पताल से एंबुलेंस मुहैया नहीं कराई गई जिसके बाद मजबूर होकर मृतक का शव साइकिल पर लाना पड़ा।

वही इन खबरों के आने का तांता पिछले साल से ज्यादा होने लग गया। पिछले साल भी ओडिशा के कालाहांडी के सरकारी अस्पताल से मानवता को शर्मसार करने की घटना सामने आई। यहां अस्पताल प्रशासन की तरफ से एंबुलेंस मुहैया ना कराए जाने के बाद मजबूर होकर अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर पैदल चलकर लाया गया था। यहां दाना माझी जिस वक्त अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर चल रहा था तो उसके साथ चल रही उसकी बेटी की आंखों से आंसू रुकरने का नाम ही नहीं ले रहे थे। किसी को भी उनकी इस हालत पर तरस नहीं आ रहा था।

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