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युवाओं के लिए प्रेरणा हैं कानपुर के पद्मश्री रवि चतुर्वेदी, 83 साल की उम्र में की पीएचडी

युवाओं के लिए प्रेरणा हैं कानपुर मूल के पद्मश्री रवि चतुर्वेदी, 83 साल की उम्र में की पीएचडी

कानपुर: शिक्षा उम्र की मोहताज नहीं होती… इस बात को सच साबित किया है, यूपी के कानपुर जिले के मूल निवासी अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट कमेंटेटर ने, जिन्‍होंने 83 वर्ष की उम्र में पीएचडी की है।

अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट कमेंटेटर हैं पद्मश्री रवि चतुर्वेदी  

मूल रूप से कानपुर के रहने वाले और वर्तमान में दिल्ली के मुनीरका निवासी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कमेंटेटर व पद्मश्री रवि चतुर्वेदी ने 83 वर्ष की उम्र में पीएचडी की है। इन्‍हें छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (CSJMU) में 22 मार्च को होने वाले दीक्षा समारोह में पीएचडी की उपाधि प्रदान की जाएगी।

दिल्ली यूनिवर्सिटी से जूलॉजी डिपार्टमेंट (प्राणि विज्ञान विभाग) में प्रोफेसर के पद से रिटायर्ड हुए रवि चतुर्वेदी ने क्रिकेट कमेंटेटर का सफर कानपुर से ही शुरू किया। टीम इंडिया और इंग्लैंड के बीच ग्रीन पार्क स्टेडियम में वर्ष 1961 में हुए टेस्ट मैच के दौरान वह कमेंटेटर रहे हैं।

वर्ष 1961 में पहली बार की कमेंट्री

शहर के दिलीप नगर क्षेत्र के रहने वाले पद्मश्री रवि चतुर्वेदी ने बताया कि, उस जमाने में टेस्‍ट क्रिकेट मैच दो से तीन साल बाद हुआ करते थे। उन्‍होंने बताया कि, वर्ष 1961 में कानपुर से पहली बार हिंदी में कमेंट्री हुई थी और कमेंट्री के लिए उन्‍हें चुना जाना उनके लिए गर्व की बात थी। उस समय से लेकर अब तक वह हिंदी व अंग्रेजी में 112 टेस्ट मैच व 220 एकदिवसीय अंतरराष्‍ट्रीय (वन-डे इंटरनेशनल) मैच में कमेंट्री कर चुके हैं।

अपने जीवन के दिलचस्प पहलू के बारे में बताते हुए उन्‍होंने कहा कि, वह तो जूलॉजी विभाग में प्रोफेसर थे, लेकिन इस दौरान उन्‍होंने क्रिकेट व फिजिकल एजुकेशन (शारीरिक शिक्षा) सब्‍जेक्‍ट में शोध कार्य किया। अंतरराष्‍ट्रीय कमेंटेटर ने बताया कि, उन्‍हें बचपन से ही क्रिकेट का बेहद शौक था और इसके लिए उन्‍होंने कई सरकारी नौकरियां भी छोड़ी।

दिल्ली विवि से जूलॉजी विषय में एमएमसी, अकादमी ऑफ साइंस चेकोस्लोवाकिया व विंडसर विवि कनाडा से डिप्लोमा करने के बाद वह दिल्ली यूनिवर्सिटी में बतौर शिक्षक नियुक्‍त हो गए।

क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी से मिली पीएचडी करने की प्रेरणा

उन्‍होंने बताया कि, वर्ष 2002 में रिटायर होने के बाद उन्‍होंने क्रिकेट खिलाड़ी बिशन सिंह बेदी की प्रेरणा से शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत ‘क्रिकेट के ज्ञात एवं अज्ञात पहलुओं’ सब्‍जेक्‍ट पर पीएचडी की। इसमें उन्होंने चार देशों भारत, ऑस्‍ट्रेलिया, वेस्टइंडीज व इंग्लैंड में हुए क्रिकेट पर विशेष अनुसंधान कार्य किया। इस दौरान वह ऐसे पहलुओं को सबके सामने लाए, जिनके बारे में खेल जगत को जानकारी भी नहीं थी।

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