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कोरोना वारियर्स को सेना की सलामी, डॉक्टर, सफाई कर्मी और पुलिसकर्मियों को किया सम्मानित

2 मेरठ कोरोना वारियर्स को सेना की सलामी, डॉक्टर, सफाई कर्मी और पुलिसकर्मियों को किया सम्मानित

मेरठ। देश के डॉक्टरों की हौसला अफजाई के लिए अब सेना भी आगे आई है। चीफ डिफेंस ऑफ स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने तीनों सेनाओं के प्रमुखों को कोरोना योद्धाओं का सम्मान करने के निर्देश दिए हैं। थल सेना द्वारा जिले में कोरोना अस्पताल के बाहर सेना का बैंड बजाया जाएगा। तीन मई को सेना अपने बैंड की धुन से डॉक्टरों को सम्मान देगी।

यहां मेडिकल कॉलेज को कोविड अस्पताल बनाया गया है। सेना ने जिले में बैंड की प्रस्तुति देने की तैयारी कर ली है। इस पर अंतिम फैसला शनिवार को लिया जाएगा। सीडीएस रावत ने कहा हम सैन्य बल की ओर से सभी कोरोना योद्धाओं, डॉक्टरों, नर्सों, सफाई कर्मचारियों, पुलिस, होम गार्ड, डिलिवरी ब्वॉय और मीडिया के लोगों का शुक्रिया करना चाहते हैं, जो हम तक सरकार के संदेश पहुंचा रहे हैं।

मेरठ 1 कोरोना वारियर्स को सेना की सलामी, डॉक्टर, सफाई कर्मी और पुलिसकर्मियों को किया सम्मानित

छह से सात रेजीमेंटल बैंड मौजूद

मेरठ में सेना के छह से सात रेजिमेंटल बैंड मौजूद है। इन्हीं बैंड के माध्यम से सेना के जवान डॉक्टरों को सम्मान देने आएंगे। आमतौर पर सेना के बैंड अपने आधिकारिक कार्यक्रम में ही प्रदर्शन करते हैं। मेरठ में रेजिमेंटल पाइप बैंड का प्रदर्शन मेडिकल में देखने को मिल सकता है।

सेना का बैंड इसलिए महत्वपूर्ण

युद्ध और संगीत यूं तो एक दूसरे के विपरीत बातें हैं लेकिन जो संगीत एक तरफ रूह को सुकून देता है। वहीं, जंग के मैदान में दुश्मन के खिलाफ जवानों में कुछ कर गुजरने के भाव भी भर देता है। युद्ध के मैदान में बजने वाला संगीत जवानों में अपने वतन के लिए प्रेम और मर-मिटने का जज्बा पैदा करता है। हर वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान होने वाली बीटिंग रिट्रीट हर देशवासी का मन मोह लेती है। बीटिंग रिट्रीट में भारतीय सेना के तीनों अंगों के मिलिट्री बैंड एक साथ भारत के राष्ट्रपति को सलामी देते हैं।

https://www.bharatkhabar.com/shramik-special-train-from-nashik-in-maharashtra-carrying-about-850-workers-and-workers-reached-charbagh-station-in-lucknow/

भारतीय मिलिट्री बैंड की खूबियां

भारतीय मिलिट्री बैंड की कहानी 300 साल पुराने ब्रिटिश मिलिट्री बैंड के इतिहास से जुड़ी हैं। ब्रिटिश राज खत्म होने पर कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल केएम करियप्पा ने 1950 में मध्य प्रदेश के पचमढ़ी में ‘मिलिट्री स्कूल ऑफ म्यूजिक’ की नींव रखी। इसे ‘नेलर हॉल ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। यही वह समय था जब भारतीय धुनों पर आधारित हिंदुस्तानी मिलिट्री बैंड को आकार दिया गया।

भारतीय लोकगीतों से ली गईं हैं बैंड की धुनें

भारतीय मिलिट्री बैंड की ज्यादातर धुनें लोक कथाओं पर आधारित हैं। प्राचीन युद्ध और हिंदुस्तानी संगीत की परंपराओं में रची-बसी और विदेशी वाद्य यंत्रों पर बजाई गई धुनें भारतीय मिलिट्री बैंड की खासियत हैं। मिलिट्री बैंड द्वारा बजाई जाने वाली धुनें बैंड मास्टरों ने पंजाब, राजस्थान, मारवाड़, गढ़वाल और कोंकण के लोकगीतों से ली हैं। इनमें वीर गोरखा का किस्सा, कोंकण सुंदरी की कहानी, अल्मोड़ा-मार्च, चन्ना-बिलौरी की गाथा, पटनी टॉप के गीत-गाथा आदि शामिल हैं।

प्रोफेसर ए लोबो ने रचा प्रसिद्ध संगीत

भारतीय मिलिट्री बैंड प्रत्येक आयोजन के हिसाब से तैयार की जाती हैं धुनें मिलिट्री म्यूजिक के कंपोजीशन में सबसे आगे थे मेजर रॉबर्ट्स और हैरोल्ड जोसेफ, एलबी गुरंग, जनरल निर्मल चंद्र विज और मेजर नाजिर हुसैन जैसे अफसर। इन्होंने विभिन्न मौकों के हिसाब से अलग-अलग धुनें तैयार कीं, जिनमें राष्ट्रीय उत्सवों पर अक्सर बजाई जाने वाली क्विक मार्च कैटेगरी की धुन-‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ भी शामिल है। प्रोफेसर ए लोबो ने इसका संगीत दिया। भारतीय थलसेना में रेजिमेंटल स्तर पर म्यूजिकल बैंड भारतीय मिलिट्री बैंड

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