वाराणसी में स्थित भगवान शिव शंकर का काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदूओं की आस्था का प्रतीक है। जिसे मुगलों द्वारा कई बार तहस-नहस कर दिया गया था। वहीं इसी बीच अब मंदिर का कार्य निर्माण जोरो-शोरो से शुरू हो गया है। इसी के साथ काशी को भारत का सबसे प्राचीन शहर भी कहा जाता है। क्योंकि इसका महाभारत और उपनिषद में भी उल्लेख किया गया है। इसी के साथ-साथ इसे महात्माओं और संतों की नगरी भी कहा जाता है।
किसने किया था काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त-
पुराणों के अनुसार काशी पहले भगवान विष्णु की पुरी थी। जहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे। जिसके बाद वहां बिंदु सरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नितय आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास स्थान बन गई। काशी में हिन्दुओं का पवित्र स्थान काशी विश्वनाथ है। मान्यता यह भी है कि काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशुल की नोक पर बसी हुई है। जहां बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक काशी विश्वनाथ विराजमान हैं। हिंदुओं के इस धार्मिक स्थान को मुगलों द्वारा कई बार ध्वस्त कर दिया गया था। मंदिर को टुड़वाने वाले मुगलों में मुहम्मद गौरी, शाहजहां और औरंगजेब शामिल थे। औरंगजेब ने मंदिर ध्वस्त करके ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। इस पूरे प्रकरण का उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित “मासीदे आलमगिरी” में वर्णन है।
मंदिर का पुर्ननिर्माण शुरू हुआ-
मंदिर के स्थान पर इस समय एक मस्जिद है, जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। लेकिन इतिहासकारों के अनुसार इस जगह मंदिर है। जिसके चलते खुदाई के दौरान अवशेष भी प्राप्त हुए। काशी विश्वनाथ मंदिर का विवाद लगभग 350 वर्ष पुराना है। भगवान शिव की नगरी का फिर से भव्य निर्माण शुरू किया जा चुका है। मंदिर का निर्माण कार्य शीघ्रता से किया जा रहा है। मंदिर का निर्माण कार्य देख शिव भक्तों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है।