नई दिल्ली। अगले साल होने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है। जहां एक तरफ बीजेपी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही आम चुनाव में उतरेगी तो वहीं कांग्रेस को लेकर अभी संशय बरकरार है। हालांकि कांग्रेस का एक धड़ा तो राहुल गांधी को ही प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है और ये सही भी है क्योंकि हाल में संपन्न हुए गुजरात के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बेसक हार का सामना करना पड़ा, लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने गुजरात की सत्ता पर 22 साल से काबिज बीजेपी को हिला के रख दिया था। वहीं अब सवाल ये उठता है कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री के सफल उम्मीदवार हैं?
इस सवाल को लेकर राजनीति विशेषज्ञ चेतन भगत का मानना है कि राहुल गांधी पार्टी के निर्विवाद नेता है, लेकिन निष्पक्ष मतदताओं में वो अपनी जगह नहीं बना पाए हैं। चुनाव में इस तरह के वोटरों की संख्या लगभग पांच लाख है जोकि इधर या उधर झुकने के चलते किसी भी पार्टी को झटका दे सकते हैं। दूसरी तरफ देश में नए 10 लाख मतदाता हैं, जोकि किसी को भी सत्ता के शिखर पर पहुंचाने के लिए मांझी का काम करते हैं। इन्हीं वोटों के चलते बीजेपी ने 2014 में सत्ता हासिल की थी। विरोध के बावजूद बीजेपी ने मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया था क्योंकि उन्हें पता था कि मोदी इन मतों को आसानी से साध सकते हैं।
भगत का मानना है कि ऐसे वोटरों को खींचने के लिए कांग्रेस को तत्कला प्रभाव से पीएम का उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए ताकि वो इन मतों को समय रहते साध सके। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस को सुझाव दिया है कि वो पीएम उम्मीदवार के तौर पर राहुल गांधी के बजाए सचिन पायलट को अपना उम्मीदवार बनाए। उनके मुताबिक 47 वर्षिय राहुल की अपेक्षा में 39 वर्षिय पायलट कांग्रेस को सत्ता के शिखर पर पहुंचा सकते हैं क्योंकि युवा होने के नाते वो सीधे तौर पर भारत की 65 फीसदी युवा मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में कर सकते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया और युवा वोटरों से अपील करते हुए कहा कि इन सबके बीच यदि कांग्रेस सचिन के नेतृत्व में राजस्थान में जीत जाती है तो ये उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात होगी।
इसके साथ ही यदि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में सचिन पायलट का समर्थन करते हैं तो उनका कद भी स्वाभाविक ढंग से बढ़ेगा। इस तरह राहुल और सचिन की जोड़ी कमाल कर सकती है। उनका मानना है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस की परंपरागत छवि ऐसी हो गई थी कि वे अल्पसंख्यक वोटों की खातिर हिंदू भावनाओं की अनदेखी कर देती थी। ऐसे में कांग्रेस को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि वे हिंदू विरोधी नजर नहीं आए। कांग्रेस को आधुनिक हिंदुत्व का हल्का संस्करण लाना होगा जो कट्टरवादी नहीं दिखे। इस वजह से परंपरावादियों को संतुष्ट करने के साथ नई पीढ़ी की आकांक्षाओं को तुष्ट करे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपने दम पर कमाल करने की स्थिति में नहीं है इसलिए उसे नए दलों के साथ गठबंधन करना शुरू कर देना चाहिए। लेकिन इनमें शर्त ये होनी चाहिए कि ऐसे सहयोगियों की तरफ से किसी भी प्रकार के घोटाला नहीं होने की गांरटी हो।