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सीएम ने किया बाल मित्र पुलिस थाने का शुभारंभ, सुरक्षा के लिए की 1 करोड़ राहत कोष की घोषणा

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देहरादून। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने थाना डालनवाला में उत्तराखण्ड के प्रथम बाल मित्र पुलिस थाने का शुभारंभ किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने बच्चों की सुरक्षा के लिए 1 करोड़ के राहत कोष की घोषणा की। इस अवसर पर मेयर सुनील उनियाल गामा, विधायक खजानदास, महिला आयोग की अध्यक्ष  विजया बड़थ्वाल, सचिव विनोद रतूड़ी, एच.सी सेमवाल, डीआईजी गढ़वाल नीरू गर्ग, जिलाधिकारी देहरादून आशीष श्रीवास्तव, एसएसपी देहरादून डॉ. वाई.एस. रावत आदि उपस्थित थे।

निराश्रित बच्चों के लिए सरकारी सेवाओं में 5 प्रतिशत की व्यवस्था-

बता दें कि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत थाना डालनवाला में उत्तराखण्ड के प्रथम बाल मित्र पुलिस थाने का शुभारंभ किया। जिसके चलते इस मौके पर सीएम ने कहा कि उत्तराखण्ड में बाल मित्र थाने के रूप में उत्तराखण्ड में एक नई शुरूआत की गई है। यह पुलिस का एक महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम होगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बच्चों को जिस माहौल में ढालना चाहें, वे उस माहौल में ढल जाते हैं। इसलिए बच्चों को बेहतर माहौल मिलना जरूरी है। बाल मित्र पुलिस थाने से लोगों को ये लगे कि बच्चों के संरक्षक आ रहे हैं। जो बच्चे अनजाने में अपनी दिशा से भटक जाते हैं, इन थानों के माध्यम से इनको सही दिशा देने के प्रयास किये जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा निराश्रित बच्चों के लिए सरकारी सेवाओं में 5 प्रतिशत तथा दिव्यांगजनों के लिए भी 4 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

ऑपरेशन ‘मुक्ति’ के तहत लगभग 2200 बच्चे चिन्हित किये गये-

इसके साथ ही उत्तराखण्ड बाल संरक्षण अधिकार आयोग की अध्यक्ष श्रीमती ऊषा नेगी ने कहा कि पुलिस के सहयोग से प्रदेश के सभी 13 जिलों में बाल मित्र पुलिस थाने खोले जायेंगे। इन थानों में बच्चों के काउंसलिग की व्यवस्था भी की जाएगी। उन्हें कहा कि इसके लिए पुलिस विभाग को 13 लाख रूपये दिये जायेंगे। पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि बाल मित्र पुलिस थाना प्रदेश में नई मुहिम शुरू की गई है। हमारा प्रयास है कि हर थाने को महिला एवं चाइल्ड फ्रेंडली बनाया जाए। इससे थाने के नाम से बच्चों के मन में जो भय रहता है, वह दूर होगा। उन्होंने कहा कि राज्य में ऑपरेशन ‘मुक्ति’ के तहत लगभग 2200 बच्चे चिन्हित किये गए। इनको सड़को से भीख मांगने के प्रचलन से बाहर निकाला गया। इस अभियान के तहत ‘भिक्षा नहीं शिक्षा दो’ की मुहिम चलाई गई। आज इनमें से अधिकांश बच्चे स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं।

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