लखनऊ। यूपी की प्रमुख विरोधी समाजवादी पार्टी को पिछले दिनों फाकिर और गोपाल के रूप में गहरा झटका लगा है। पार्टी की नीतियों से नाराज दोनों ही नेताओं ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।
फाकीर सिद्दीकी लखनऊ महानगर के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं और मुस्लिम चेहरे के रूप में स्थापित नेता हैं। पिछली बार हुए नगर निगम के चुनावों में उनकी रणनीति काफी अहम रही थी। समाजवादी पार्टी को अच्छी सफलता भी मिली थी।
वहीं मेरठ निवासी सपा व्यापार सभा के पूर्व अध्यक्ष गोपाल अग्रवाल ने भी सपा से नाता तोड़ लिया है। दोनों अलग-अलग वर्ग पर गहरी पकड़ वाले नेता हैं।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव सप्ताह भर के अंदर विभिन्न जिलों से करीब दो दर्जन से ज्यादा लोगों को पार्टी में शामिल करा चुके हैं। सपा का दामन थामने वाले सियासी और जातीय समीकरण के लिहाज से अहम बताए गए हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अलग-अलग वर्ग के लोगों को जोड़कर वह विधानसभा चुनाव 2022 में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करा सकती है।
लेकिन राजधानी लखनऊ में सपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष फाकिर सिद्दकी ने सोमवार को कांग्रेस का हाथ थाम लिया। हालांकि वह पहले भी कांग्रेस में रहे हैं लेकिन समाजवादी पार्टी और पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव से गहरा नाता रहा है।
फाकीर यह सवाल खड़े कर रहे थे कि आखिर उम्र दराज अहमद हसन एमएलसी के लिए बार-बार मौका क्यों दिया जा रहा है और जनाधार वाला नेता होने के बावजूद भी उनकी उपेक्षा क्यों की जा रही है। इन सवालों की वजह से पार्टी हाईकमान फकीर सिद्दीकी से नाराज चल रहा था।
इसी तरह रविवार को मेरठ के गोपाल अग्रवाल ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। वह समाजवादी व्यापार सभा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा दो बार प्रदेश सचिव रहे हैं।
आगरा के मूल निवासी 1967 से पार्टी से जुड़े रहे हैं। इसके बाद उन्होंने मेरठ पहुंच कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के व्यापारियों को समाजवादी पार्टी के बैनर तले इकट्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इन दोनों के इस्तीफे के बाद पार्टी के अंदर खाने में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। गोपाल अग्रवाल ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को भेजे इस्तीफे में व्यक्तिगत कारण बताया है।