अगरबत्ती के धूंए और धूपबत्ती से वातावरण में होने वाले प्रदूषण को लेकर अब केन्द्रीय प्रदूषण एवं नियंत्रण बोर्ड संजीदा हो गया है।इसको लेकर हाल के दिनों में विदेशों में कई शोध हुए हैं। जिनका परिणाम स्वरूप ये निकल कर आया कि इसके धूंए में बैंजीन, सल्फ़र डाई ऑक्साईड, कार्बन मोमो ऑक्साईड के तत्व और ये ज़हरीली गैसें पाई जाती है। इसका प्रभाव बच्चों और वृद्धों पर ज़्यादा होता है।
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आजकल सेंथेटिक कैमिकल से अगरबत्तियां और धूबत्तियां तैयार की जाती हैं।जिनसे त्वचा में जलन और एलर्जी के साथ श्वसन तंत्र और फेफड़ों में भी दिक़्क़तें होने लगी हैं। देखा जाए तो सिगरेट से ज़्यादा गम्भीर है ये धूंआ।अगरबत्ती के जलनें जो कल निकलते हैं वो ब्लड में जाकर शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक प्रभाव डालते है
वर्टीकल गार्डन एक बेहतर विकल्प
प्रदूषण का खतरा पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है।इसके लिए इन दिनों विदेशों में गाड़ियों से सड़कों पर होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने की तर्ज़ पर फ़्लाई ओवरों के पिलरों पर वर्टिकल गार्डन बनाया जा रहा है।हमारे देश में भी इसी को देखते हुए इस तरह के गार्डन की मांग भी बड़े ही पुरज़ोर तरीक़े से उठ रही है। इसको लेकर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भारत सरकार ने कई प्रभावी क़दम उठाए हैं। हवा को शुद्ध करने के उद्देश्य से कई जगह पर सरकार ने कई प्लांट भी लगाए हैं। इनमें चारकोल का प्रयोग कर इसे बनाया गया है।जल्द ही इस तरह के गार्डन पर भी सरकार विचार कर सकती है।
पर्यावरणविद और वैज्ञानिक के मुताबिक वायु प्रदूषण से निपने के लिए भारत में वर्टीकल गार्डन एक बेहतर विकल्प हो सकता है।पर्यावरणविद के मुताबिक पॉल्यूशन सिगरेट और बीड़ी से ही नहीं बल्कि अगरबत्तीयों के धुएं से भी फैलता है।वैज्ञानिक ने बताया यदि कोई सिगरेट नहीं पीता है और वह अगरबत्ती के धुएं के पास बैठता है तो उसके लिए यह बहुत ही हानीकारक है।