नई दिल्ली। देश में इन दिनों पराली जलाने की समस्या सबसे अधिक बनी रहती है। पराली जलाने से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण की समस्या और अधिक मात्रा में प्रबल हो जाती है। जिसको लेकर सरकार द्वारा एक कानून बनाया जाएगा, जिसे आम जनता के सामने दो-तीन में रखा जाएगा। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि नए कानून के तहत एक संस्थ का गठन किया जाएगा। कोर्ट ने इस बात पर संतोष जताया कि सरकार अपनी तरफ से एक उच्चस्तरीय संस्था का गठन कर रही है।
बता दें कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में फसल के अवशेष जलाए जाने से होने वाला धुंआ हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण की बड़ी वजह बनता है। याचिकाकर्ता आदित्य दुबे के वकील विकास सिंह ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की तरफ से रखे गए इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “इस साल भी प्रदूषण की समस्या की शुरुआत हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने आपातकालीन स्थिति को देखते हुए जस्टिस लोकल कमेटी का गठन किया था। लेकिन अब सरकार नई व्यवस्था बनाने की बात कह रही है। इसे लागू होने में 1 साल लग जाएंगे। इस साल भी दिल्ली एनसीआर के लोगों को प्रदूषण झेलना होगा।” 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने की समस्या से निपटने का ज़िम्मा अपने पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर को सौंपा था। कोर्ट ने कहा था कि जस्टिस लोकुर की एक सदस्यीय कमिटी राज्यों से रिपोर्ट लेगी और ज़रूरी निर्देश देगी। यह कमिटी NCC, NSS और भारत स्काउट के सदस्यों के ज़रिए खेतों की निगरानी भी करवाएगी। आज कोर्ट ने केंद्र के अनुरोध पर इस आदेश को फिलहाल स्थगित कर दिया।
केंद्र सरकार के लिए पेश हुए सॉलिसीटर जनरल ने याचिकाकर्ता के वकील को आश्वस्त करते हुए कहा, “हमारी सरकार बहुत तेज काम करती हैं। आप निश्चित रहिए। जो व्यवस्था बनाई जानी है, उसकी जानकारी दो-तीन दिनों में सामने आ जाएगी और जल्द से जल्द उसे लागू भी कर दिया जाएगा। पराली जलाने और दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण की समस्या से युद्धस्तर पर निपटा जाएगा।” कोर्ट मामले पर 29 अक्टूबर को आगे सुनवाई करेगा। मामले में एमिकस क्यूरी की हैसियत से कोर्ट की सहायता कर रहे वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने भी केंद्र के प्रस्ताव का समर्थन किया।