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हफ्तेभर में आप्रवासी भारतीयों के मताधिकार पर फैसला करे केंद्र सरकार

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नई दिल्ली। आप्रवासी भारतीयों को मताधिकार देने के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वो एक हफ्ते में आप्रवासी भारतीयों को मताधिकार देने के बारे में फैसला कर कोर्ट को सूचित करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने निर्वाचन आयोग के अक्टूबर 2014 के फैसले पर अपनी सहमति जताई थी जिसमें उसने आप्रवासी भारतीयों को वोट देने का अधिकार देने की बात की थी।

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चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि वो ये बताएं कि वे आप्रवासी भारतीयों को वोट देने का अधिकार देने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करेंगे या कोई नया कानून लाएंगे। कोर्ट ने कहा कि आप पिछले तीन सालों से कह रहे हैं कि जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करेंगे। क्या सरकार ऐसे काम करती है।

केरल के आप्रवासी भारतीय शमसीर वीपी और ब्रिटेन की प्रवासी भारत संस्था के चेयरमैन नागेंद्र चिंदम ने आप्रवासी भारतीयों को वोट देने का अधिकार देने के लिए अलग-अलग दो जनहित याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्र सरकार सशस्त्र बलों के साथ-साथ अन्य सैन्यकर्मियों को पोस्टल बैलट के जरिये वोट देने का अधिकार दे रही है लेकिन केवल आप्रवासी भारतीयों को वोटिंग का अधिकार नहीं दे रही है।

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