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सूर्यदेव की उपासना का पर्व छठ हुआ शुरू

chath सूर्यदेव की उपासना का पर्व छठ हुआ शुरू

नई दिल्ली। सूर्यदेव की उपासना का पावन पर्व छठ  खरना के साथ शुरू हो रहा है। इस महाव्रत को लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश से बिहार तक छठ व्रतियों का जमावड़ा नदियों के घाटों पर लगने लगा है। छठ व्रत का जुड़ाव मुख्यत: बिहार और उत्तर प्रदेश से है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाला ये पर्व अब पूरे भारत समेत विश्व के कई राष्ट्रों में मनाया जाता है। इस आस्था और विश्वास के पर्व का सीधा जुड़ा प्रकृति से होता है। इस पर्व में सूर्य की उपासना का महत्व है।

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क्योंकि सूर्य ही से तेज और श्रृष्टि में सृजन है। इस पर्व में प्रकृति से मिली वस्तुओं को भेंट स्वरूप अर्पित किया जाता है। इस पर्व को लेकर एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि जब पाण्डवों का राजपाठ सब चला गया था तो द्रौपदी ने ये व्रत रखा था। जिसके बाद उन्होने अपना खोया हुआ राजपाठ वापस मिल गया था। यह पर्व लोक आस्था का पर्व भी कहा जाता है। इस पर्व को 4 खंडों में मनाया जाता है, पहले खंड में नहाय-खाय होता है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है । पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में । चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्वको कार्तिकी छठ कहा जाता है ।

नहाय खाय के दिन व्रती खरना की पूजा के प्रसाद की तैयारी में गेहूं धो कर सुखा लेते है, और मिट्टी के चूहे बनाये जाते है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। खरना के दिन व्रतधारी दिनभर उपवास करते हैं और शाम में भगवान सूर्य को खीर-पूड़ी, पान-सुपारी और केले का भोग लगाने के बाद खुद खाते हैं। यह व्रत काफी कठिन होता है. इस पूरी प्रक्रिया में नियम का विशेष महत्व होता है। पूरी पूजा के दौरान किसी भी तरह की आवाज नहीं होनी चाहिए। खासकर जब व्रती प्रसाद ग्रहण कर रही होती है और कोई आवाज हो जाती हो तो खाना वहीं छोड़ना पड़ता है। उसके बाद छठ के खत्म होने पर ही वह मुंह में कुछ डाल सकती है। इससे पहले एक खर यानी तिनका भी मुंह में नहीं डाल सकती इसलिए इसे खरना कहा जाता है।

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