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यूपी बजट 2021-22 की शुरुआत निर्मला सीतारमण की तरह इस शायरी से हुई, क्या है खास

यूपी बजट 2021-22 की शुरुआत निर्मला सीतारमण की तरह इस शायरी से हुई, क्या है खास

लखनऊ: यूपी बजट 2021-22 सोमवार को वित्तमंत्री सुरेश खन्ना ने प्रस्तुत किया। इस बजट की शुरुआत सुरेश खन्ना ने मंजूर हाशमी की गज़ल से की। यह इस सरकार का आखिरी बजट भी है, इसीलिए इसमें कई बड़े एलान होने की उम्मीद है।

केंद्रीय वित्त मंत्री ने भी पढ़ी थी वही गज़ल

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई 2019 को भारत सरकार का बजट प्रस्तुत किया। एक महिला के तौर पर इंदिरा गांधी के बाद वह बजट पेश कर रही थी। इंदिरा गांधी उस वक्त प्रधानमंत्री के पद पर भी थीं।

निर्मला सीतारमण ने अपनी बजट स्पीच की शुरुआत में मंजूर हाशमी की ग़ज़ल पढ़ी। जिसकी पंक्तियां “यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट भी लेकर चिराग जलता है।” यही लाइन आज एक बार फिर यूपी बजट 2021-22 में भी सुनने को मिली।

सुरेश खन्ना पेश कर रहे बजट

उत्तर प्रदेश सरकार का पांचवा बजट वित्तमंत्री सुरेश खन्ना पेश कर रहे हैं। सोमवार को उन्होंने सदन में मंजूर हाशमी की गजल से अपनी बात की शुरुआत की। यह बजट पूरी तरह से पेपरलेस बजट है। इसमें किसी भी तरीके के पेपर का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

सभी सदन के लोग टेबलेट का इस्तेमाल करते हुए बजट देखेंगे। वहीं बजट पेश करने के लिए भी डिजिटल तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

बदायूं से लेकर एएमयू तक मंजूर हाशमी का नाता

मंजूर हाशमी का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं में 14 सितंबर 1935 को हुआ था। लेखन के साथ-साथ वह समाज के अलग-अलग मुद्दों पर भी अपनी राय रखते थे।

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उन्होंने अपनी पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से की। इसके बाद यहीं मौलाना आजाद लाइब्रेरी में डिप्टी लाइब्रेरियन के पद पर रहे। उनकी कलम से लिखी गई गजलें आज भी लोगों को नया संदेश देती हैं। इसीलिए वित्तमंत्री सुरेश खन्ना ने इन लाइनों का इस्तेमाल बजट की शुरुआत में किया।

कोरोना योद्धाओं को याद किया

वित्तमंत्री ने अपनी स्पीच की शुरुआत में सबसे पहले कोरोना योद्धाओं को याद किया। डॉक्टर, फ्रंटलाइन वर्कर और अन्य कर्मियों का उन्होंने धन्यवाद दिया। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने इस ग़ज़ल को भी बोल कर अपनी बात को और मजबूती दी।

युवाओं की शिक्षा और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने कुछ और लाइनों से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा-

“जो होता है वो होने दो, यह पौरुष हीन कथन है.

हम जो चाहेंगे होगा, इसमें ही सत्य वचन है।”

मंज़ूर हाशमी की गज़ल की पंक्तियां-

यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी लेकर चिराग जलता है
सफर में अब के ये तुम थे कि खुश गुमानी थी
यही लगा कि कोई साथ-साथ चलता है
गिलाफ-ए-गुल में कभी चांदनी के पर्दे में
सुना है भेष बदलकर भी वो निकलता है
लिखूं वो नाम तो कागज़ पे फूल खिलते हैं
करूं खयाल तो पैकर किसी का ढलता है
रावण दावन है उधर ही तमाम खल्क-ए-खुदा
वो खुश खिराम जिधर सैर को निकलता है

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