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बुद्ध पूर्णिमा: भारत ही नहीं, इन देशों में भी मचती है बुद्ध जयंती की धूम

बुद्ध पूर्णिमा

लखनऊ: हर साल हिंदी कैलेंडर के वैशाख महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे बौद्ध जयंती के रूप में भी मनाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि ये ही वो खास दिन है जब भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसी दिन उन्हें बोधित्तव की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उन्होंने महानिर्वाण की ओर प्रस्थान किया था। आज बौद्ध धर्म विश्व में एक महत्वपूर्ण और विशेष धर्म के तौर पर जाना जाता है।

आयोजित किए जाते हैं विशेष कार्यक्रम

सत्य और ज्ञान की ओर अग्रसर करने वाले इस धर्म के करोड़ों अनुयायी अलग-अलग देशों में रहते हैं। भारत के साथ साथ चीन, नेपाल, सिंगापुर, कोरिया, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, अमेरिका, यूरोपीय देशों में इस दिन विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

कैसे घोषित हुआ बुद्ध पूर्णिमा का अवकाश?

बुद्ध पूर्णिमा को अवकाश का दर्जा 20वीं सदी से पहले आधिकारिक रूप से नहीं मिला था। श्रीलंका में वर्ष 1950 में हुए विश्व बौद्ध सभा के आयोजन में इस विषय पर चर्चा की गई और सर्वसम्मति से इस सभा ने बुद्ध पूर्णिमा को आधिकारिक अवकाश बनाने का निर्णय किया। जिसके बाद इस दिन को भगवान बुद्ध के जन्मदिन के सम्मान में मनाया जाता है।

इन देशों में मनाई जाती है बुद्ध जयंती

भगवान बुद्ध की महिमा के किस्से सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रचलित है। भारत से ज्यादा अनुयायी बौद्ध धर्म के विदेशों में हैं। इन देशों के सूची में कंबोडिया, नेपाल, जापान, चीन, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाईलैंड जैसे देश शामिल हैं।

कैसे मनाई जाती है बुद्ध जयंती?

बुद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन घरों में दीपक जलाते हैं और फूल-मालाओं से पूरे घर को सजाते हैं। घरों में सुंगधित-खुश्‍बूदार धूप व अगरबत्तियां जलाई जाती हैं। मंदिरों में बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का पाठ होता है। जगह-जगह विभिन्न संस्थाओं द्वारा जनसेवा का कार्य किया जाता है।

इस दिन बोधिवृक्ष की पूजा होती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएं सजाई जाती हैं। बोधिवृक्ष की जड़ों में दूध व शुद्ध जल डाला जाता है। वृक्ष के आस-पास दीपक भी जालए जाते हैं। दूर-दूर से अनुयायी बोधगया आते हैं। इन दिन मांस की सेवन पूरी तरह से प्रतिबंधित होता है। पक्षियों को पिंजरे से मुक्त भी करते हैं लोग। दान-पुण्य का काम भी किया जाता है।

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