चंडीगढ़। पंजाब में आम आदमी पार्टी की स्थिति बिना किसी सेनापति के बेलगाम होती जा रही है। मुद्दों की लड़ाई के लिए जानी जाने वाली आम आदमी पार्टी पिछले दो महीने से पंजाब की अमरिंदर सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा नहीं उठा पाई है। पंजाब विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल होने के बावजूद भी वे अपनी भूमिका को सही से निभाने में असफल साबित हो रही है। दरअसल पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल द्वारा मजीठिया को चुनाव के समय नशे का कारोबारी कहना और बाद में इस मुद्दे पर माफी मांगना लोगों को रास नहीं आ रहा है।
मजीठिया से केजरीवाल की माफी के बाद सांसद भगवंत मान ने प्रदेश के अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्या दिया पार्टी को पिछले दो महीने से अपना नया प्रधान तराशने के लिए जद्दोजहाद करनी पड़ रही है। हालांकि दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को पंजाब की जिम्मेदारी सौंपकर केजरीवाल ने थोड़ा बोझ हल्का कर लिया है। बता दें कि पंजाब में सत्ता में आने का ख्वाब देख रही आप अपने नेताओं के बोलों के कारण औंधे मुंह गिरी थी। चुनाव से पहले टिकटों के बंटवारे में करोड़ों के लेनदेन के आरोप, भ्रष्टाचार व अन्य मामलों में घिरी पार्टी अपनी ही नीतियों के चलते चुनाव में बुरी तरह हारी।
इसके बाद तत्कालीन पंजाब प्रभारी संजय सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया था। उसी समय पंजाब के नेताओं ने मांग रखी थी कि पंजाब में दिल्ली की दखलंदाजी नहीं चलेगी और पंजाब के फैसले प्रदेश के नेता खुद लेंगे। इसी मुद्दे को लेकर सुखपाल सिंह खैहरा अरविंद केजरीवाल के निशाने पर रहे। नतीजतन पार्टी ने गुरप्रीत सिंह घुग्गी को संयोजक के पद से हटाकर भगवंत मान को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था। साथ ही तय किया कि पंजाब में संयोजक नहीं अध्यक्ष व उपाध्यक्ष बनाए जाएंगे। संगठन का ढांचा राष्ट्रीय नीतियों से अलग पंजाब की नीतियों के अनुसार ही होगा।
भगवंत मान को अध्यक्ष और सुनाम से विधायक अमन अरोड़ा को उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष एडवोकेट एचएस फूलका का इस्तीफा भी स्वीकार कर लिया। इसके बाद नेता प्रतिपक्ष की कमान सुखपाल सिंह खैहरा के हाथों में आई। खैहरा ने जरूर अपने स्तर पर पार्टी की तरफ से रेत खनन से लेकर नशे के मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की। पूर्व कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह को मंत्री बद से सरकार को हटाना पड़ा, लेकिन पार्टी स्तर पर लगातार फूट व बिखराव का क्रम जारी रहा।