- एजेंसी, मुम्बई
श्रीशचंद्र मिश्र फिल्म निर्माण भले ही कुछ हद तक व्यवस्थित व प्रोफेशनल हो गया है, ज्यादातर फिल्मी सितारों में लेट लतीफी की बीमारी अभी भी घर किए हुए है। दरअसल समय की पांबदी जब भारतीय मानसिकता में ही नहीं है तो फिल्मी सितारों से क्या उम्मीद की जाए? उनकी तो बिरादरी ही अलग है, सोच अलग है। दौलत और शोहरत उन्हें खुद को सबसे श्रेष्ठ मानने की ऐसी ग्रंथि में उलझा देती है कि सामान्य नियम कायदों में बंधना उन्हें कतई मंजूर नहीं होता। समय पर सेट तक पहुंचना तो उन्हें अपनी तौहीन लगती है। यही वजह है कि मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री सबसे ज्यादा अव्यवस्थित और अराजक है।
विधु विनोद चोपड़ा ने तीन साल पहले एक अंग्रेजी फिल्म ‘द ब्रोकन हॉर्स’ बनाई। सारी यूनिट हॉलीवुड की थी। कलाकार भी वहीं के। उनका आत्मानुशासन देख कर वे दंग रह गए। बताया- ‘सब पांच बजे अगरकोई शाट लेना होता था तो कलाकारों समेत पूरी यूनिट पांच बजे से पहले लोकेशन पर पहुंच जाती थी। कलाकार पूरे मेकअप के साथ और सीन की बाकायदा रिहर्सल किए हुए। और यहां मुंबई में सेट तैयार होने के बाद कलाकारों के आने का इंतजार किया जाता है। दो तीन घंटे देर से आना तो आम बात है। ज्यादा देर हो जाए तो भी शर्मिंदगी का कोई भाव उनके चेहरे पर नहीं आता। सिर्फ गले मिल कर कोई न कोई बहाना सुना देते हैं। हर निर्माता को यह बर्दाश्त करना पड़ता है। कोई स्टार से अपने रिश्ते नहीं बिगाड़ना चाहाता।’
लेट लतीफी में कोई स्टार दूसरे से पीछे नहीं रहना चाहता। ट्रैफिक या किसी अन्य कारण से देर हो जाए तो बात समझ में आती है लेकिन समय पर शूटिंग के लिए न पहुंचना तो फिल्मी सितारों की अदा बन गई है। जो जितनी देर से पहुंचे, उतना बड़ा स्टार। सिर्फ शूटिंग ही नहीं, किसी इवेंट या समारोह में भी समय पर पहुंचना सितारे अपनी तौहीन समझते है। दूसरों को इंतजार कराने में उन्हें शायद ज्यादा आत्म संतुष्टि मिलती है। यह बीमारी फिल्मों से उतर कर टीवी कलाकारों को भी अपनी चपेट में ले चुकी है।
हर लोकप्रिय टीवी कलाकार सेट पर देर से पहुंचता है। वह क्योंकि सीरियल की पहचान बन चुका होता है इसलिए उसकी लेट लतीफी को बर्दाश्त करने के अलावा और कोई चारा नहीं होता। समय का तिरस्कार करने में सबसे बड़े स्टार- तीनों खान किसी से पीछे नहीं है। आमिर खान तो खैर मूडी ठहरे, उन्हें मीडिया ने मिस्टर परफैक्शनिस्ट की उपाधि क्या दे दी कि हर शाट में मीन मेख निकाल कर दर्जनों रीटेक कराना उनकी आदत का हिस्सा बन गया है। उस पर शूटिंग के लिए लेट पहुंचना। अब क्योंकि उनकी हर फिल्म कई सौ करोड़ कमाने की गांरटी देने लगी है तो निर्माता को झक मार कर सब कुछ सहना पड़ता है।