- उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही ट्रांसफर-प्रमोशन की सिफारिशों का दौर शुरू
लखनऊ। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के विधानसभा चुनाव अब सर पर आ गए हैं। इसकी तैयारियों को लेकर पार्टियों में मंथन और बैठकों का दौर शुरू हो गया है। इस बीच अब नेताओं को अपनी जनता की भी याद सताने लगी है।
क्षेत्र में अपनी धाक को स्थापित किए रखने के लिए विधायक (MLA) और सांसद (MP) उनकी समस्याओं, मांगों को पूरा करने की कवायदों में जुट गए हैं। इस बीच अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रांसफर (Transfer) और प्रमोशन (Promotion) में सिफारिशों का दौर भी शुरू हो गया है।
अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रांसफर-प्रमोशन को लेकर बीजेपी (BJP) के विधायकों में हलचल सबसे ज्यादा दिखाई देने लगी है। बीजेपी कार्यालय (BJP Office) से लेकर मंत्रियों और सीएम (CM) के दर पर विधायक व पार्टी नेता गुहार लेकर पहुंच रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि हर विधायक-मंत्री चुनाव का हवाला देकर अपनों को समायोजित करने की गुहार लगा रहे हैं।
घोसी के विधायक ने सोशल मीडिया पर डाली पोस्ट
घोसी (Ghosi) के युवा और चर्चित विधायक विजय राजभर (MLA Vijay Rajbhar) भी अपनों के प्रमोशन को लेकर मंत्रियों के चक्कर लगा रहे हैं। इतना ही नहीं अपनी गतिविधियों की सूचना देने के क्रम में उन्होंने फेसबुक पर इसकी पूरी जानकारी भी दी है।
हालांकि, ऐसे घटनाक्रमों को लोग आमतौर पर सबके सामने नहीं लाते हैं। घोसी से बीजेपी विधायक विजय राजभर ने योगी सरकार में महिला कल्याण, बाल विकास एवं पुष्टाहार मंत्री स्वाति सिंह (Swati Singh) से मिलकर एक आंगनबाड़ी कार्यकत्री (Anganbadi) का प्रमोशन करने की गुहार लगाई है।
विजय राजभर के पत्र के मुताबिक घोसी निवासी शगुफ्ता खातून पिछले 13 साल से आंगनबाड़ी कार्यकत्री के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा है कि उनकी उम्र 50 साल से कम है। उनकी योग्यता और लगन को देखते हुए उन्हें सुपरवाइजर के पद पर प्रोन्नत किया जाए। विजय राजभर ने अपने पत्र में लिखा है कि शगुफ्ता खातून योग्य तो हैं ही साथ ही उनके बच्चे भी अब बड़े हो रहे हैं। ऐसे में उनकी शिक्षा-दीक्षा और जीवनयापन के लिए इस प्रमोशन को किए जाने की गुहार लगाई है।
जनता के हक की बात करनी ही चाहिए: विशेषज्ञ
कर्मचारी-अधिकारियों के प्रमोशन व ट्रांसफर के लिए गुहार लगा रहे जनप्रतिनिधियों की इस हरकत पर राजनीति शास्त्र के प्रो़ डॉ़ दिनेश चंद्रा कहते हैं कि इसमें कोई नई बात नहीं है। जनप्रतिनिधि अगर अपनी जनता के हक की बात करते हैं तो इसमें इतना बवाल क्यों। हां, ये जरूर है कि प्रशासनिक कार्यों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए, खासकर प्रमोशन आदि के मसलों। इससे दो बातें सामने आती हैं।
पहली ये कि अगर वो योग्य हैं और मानकों को पूरा कर रहे हैं तो नियमत: उनका प्रमोशन होगा ही। ऐसे में किसी के सामने गुहार लगाने का औचित्य नहीं है। दूसरी बात यह है कि अगर योग्यता और मानकों को पूरा करने के बाद भी आपका प्रमोशन नहीं किया जा रहा है तो यह संबंधित विभाग की लापरवाही है। जो न संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि अधिकारों का हनन भी है। इससे यह साबित होता है कि संबंधित विभाग के अधिकारी अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं।