शख्सियत

मरकर भी नहीं मरी आज भी जिंदा हैं कल्पना चावला

30 1427694220 kalpana chawala मरकर भी नहीं मरी आज भी जिंदा हैं कल्पना चावला

नई दिल्ली। ऐसे बेहद ही कम लोग होते है तो दुनिया में एक मिसाल के रुप में अपने आप को स्थापित करते ैहैं कहते हैं एस धरती पर अगर कदम रखा हैं तो कुछ ऐसा कर गुजरो की आपके जाने के बाद भी लोग आपको भूल ना सकें अपनी एक छाप लोगो के दिलों में ऐसी छोड़ो की लोग आपको एक मिसाल के रुप में याद रखे आज हम एक ऐसी ही महिला को याद कर रहे हैं जिसका नाम आज की पीढ़ी तो क्या आने वाली कोई भी पीढ़ी कभी नहीं भूल पाएंगी।

बहुत कम लोग होते हैं जिनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल होता है। ऐसे लोग जो पथरीले रास्तों को भी ऐसा सुगम बना जाते हैं जिस पर उनके बाद चलने वाले मुसाफिर सफर भी करते हैं दुआएं देते हैं। दुआएं क्यों ? इसलिए क्योंकि जिस हरियाणा से हम अक्सर खाप पंचायत और महिलाओं पर अत्याचार की खबरें ही सुनते हैं। उस राज्य से वो लड़की निकली जिसने अपनी जगह सिर्फ जमीन पर नहीं अंतरिक्ष तक बनाई तो उसके उस राज्य की लड़कियां उसे दुआएं ही तो देंगी कि आपका का नाम तारीख के खत्म होने तक लोगों की जुबां पर बना रहे।

ऐसी ही थीं कल्पना चावला जिन्होंने हरियाणा में लड़कियों के पालन-पोषण के मायनों को बदल कर रख दिया।  जहां माता पिता अपनी बेटियोको घूंघट की चादर में रखना और देखना पसंद करते थे उन्हीं माता पिता ने लड़कियों को अपनी सपनों की उड़ान भरने के लिए भी खुला छोड़ा दिया. आप आज के हरियाणा को देखिए। वहां की लड़कियों के जिंदगी में जो बदलाव आ सका है उसे देखिए कल्पना जरूर याद आएंगी और आप भी कहेगें मरकर भी जिंदा हैं कल्पना

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कैसे भरा हरियाणा से अंतरिक्ष तक का सफर

हरियाणा से अंतरिक्ष तक का सफर आसान नहीं रहा होगा लाखों मुश्किलों जरूर आई होगी पर जिसने मुश्किलों से लड़ भरा हरियाणा से अंतरिक्ष तक का सफर उसे कल्पना चावला कहते हैं।

अतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की आज 56वां जन्मतिथि है। उड़नपरी कही जाने वाली कल्पना चावला ने 17मार्च को 1962 को हरियाणा के करनाल में जन्म लिया था। कल्पना के पिता का नाम बनारसी लाल चावला और मां का नाम संज्योति था। वह सभी बहन-भाइयों में सबसे छोटी थीं। उनकी शुरुआती पढ़ाई हरियाणा में ही हु।. उन्होंने अपनी स्कूल शिक्षा करनाल के टैगोर बाल निकेतन से प्राप्त की और जब लड़कियो को शादी और घर के काम में आगे किया जाता हैं उस वक्त कल्पना ने खुद को इंजीनियर बनाने की ओर अपना कदम आगे बढ़ाया। कल्पना कई बार अंतरिक्ष मे ंउड़ान भरने की इच्छा जाहिर कर चुकी थी।

अंतरिक्ष  मे ंजाने की ओर पहला कदम-

कल्पना ने अंतरिक्ष मे ंजाने की ओर अपना पहला कदम बढ़ा दिया था और वो कदम था 1982 में इंजीनियरिंग कॉलेज मे ंप्रवेश करके कल्पना ने चंडीगढ़ इंजीनियरिंग कॉलेज से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और आगे की पढ़ाई करने अमेरिका चली गईं। इस बीच 1983 में कल्पना की मुलाकात फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर जीन-पियर हैरिसन से हुई। इसके बाद दोनों शादी के बंधन में बंध गए। 1984 में उन्होंने टेक्सास यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। इसके बाद समय आया कल्पना के सपने साकार होने का बात 1995 की है जब उन्होंने नासा बतौर अंतरिक्ष यात्री जॉइन किया। इसके साथ कल्पना चावला के पास कमर्शियल पायलट लाइसेंस भी था।

कल्पना अकसर कहा करती थीं ‘मैं अंतरिक्ष के लिए बनी हूं.’ अंतरिक्ष के लिए कल्पना ने अपनी पहली उड़ान 1998 में भरी। यह उड़ान सफल रही और कल्पना के हौसले को चार चांद लग गए।

अंतरिक्ष की पहली यात्रा के दौरान उन्होंने अंतरिक्ष में 372 घंटे बिताए और पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी कीं। इस सफल मिशन के बाद कल्पना का चयन दूसरी स्पेस उड़ान के लिए हो गया। इस क्रू में सात लोगों को स्पेस में जाना था जिसमें कल्पना चावला भी शामिल थीं। इस मिशन में कई बार देरी हुई और फाइनली यह 2003 में लॉन्च हुआ। यह 16 दिवसीय फ्लाइट थी।

आ गया मातम का वो मनहूस दिन

कल्पना की उड़ान के पर उस समय कतर गए जब कल्पना की जिदंगी में 1 फरवरी 2003 के उस मनहूस दिन ने दस्तक दी और कल्पना की उड़ान रुक गई और वो दुनिया से हमे अलविदा कहते हुए रुकसत हो गई। 1 फरवरी 2003 में जब शटल वापस पृथ्वी पर लौट रहा था और उसे कैनेडी स्पेस सेंटर पर उतरना था. सभी तरफ जश्न का माहौल था और पलभर में यह जश्न मातम में बदल गया। वो भी तब जब कल्पना की पृथ्वी से दूरी सिर्फ 16 मिनट की रह गई थी। सभी लोग कल्पना का इंतजार कर रहे थे, लेकिन जब खबर आई तो लोगों के आंखों से आंसू बहने लगे। जैसे ही कोलंबिया ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, वैसे ही उष्मारोधी परतें फट गईं और यान का तापमान बढ़ने से यह हादसा हुआ। इस हादसे में कल्पना समेत सभी अंतरिक्ष यात्रियों की इसमें मौत हो गई।

कल्पना अक्सर अपने पिता से कहा करती थीं ‘मैं अंतरिक्ष के लिए बनी हूं.’ जाते-जाते भी उन्होंने साबित कर दिया कि वह सच में अंतरिक्ष के लिए ही बनीं थीं। इस साल नासा ने हादसे में मारे गए सभी सात अंतरिक्ष यात्रियों को कोलंबिया स्पेस शटल में सम्मानित भी किया।

इस हादसे की ध्वनि साफ-साफ टेक्सास में सुनी गई. जानकारी के मुताबिक करीब 84 हजार धमाके की आवाज सुनी गई इसमें छोटे और बड़े धमाके थे। करीब 8 से 4 हजार टुकड़ों में यान बिखर चुका था और इसी के साथ एक ऐसा शख्सियत इस देश को छोडकर चली गई जो इस देश और इस देश के लोगों को खासतौर पर महिलाओं के लिए एक मिसाल साबित करके गई पर सहीं मायनों में कल्पना इस देश को इस देश के लोगो और छोड़कर नहीं गई बल्कि कई सारी कल्पना चावला इस देश को देकर गई हैं।

 

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