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हैप्पी बर्थडे-गूगल ने डूडल बना किया केएल सहगल को याद

04 3 हैप्पी बर्थडे-गूगल ने डूडल बना किया केएल सहगल को याद

नई दिल्ली। भारत के मशहूर गायक और अभिनेता केएल सहगल को कौन नहीं जानता। भारतीय सिनेमा जगत के महान पा‌र्श्व गायक और अभिनेता कुंदन लाल सहगल ने अपनी मधुर आवाज से भारतीय सिनेमा को अनेकों बेहतरीन गीत दिए जो आज भी गाएं जाते हैं औऱ उन्हें याद किया जाता हैं। आज उन ही महान हस्ती को गूगल भी डूडल बनाकर याद कर रहा हैं।बता दे कि आज उनका 114वां बर्थडे मनाया जा रहा हैं। बता दे कि गूगल के डूडल में केएल सहगल को सामने गाते हुए दिखाया गया है। ज़ाहिर है, गूगल ने ऐसा उनके सम्मान में किया है।

04 3 हैप्पी बर्थडे-गूगल ने डूडल बना किया केएल सहगल को याद

 

बता दे कि भारतीय सिनेमा जगत के महान पा‌र्श्व गायक और अभिनेता कुंदन लाल सहगल ने कई गीत गाए जैसे ‘‘एक बंगला बने न्यारा रहे कुनबा जिसमे सारा..’’, ‘‘जब दिल ही टूट गया..’’, ‘‘बाबुल मोरा नैहर छूटल जाये..’’ और ‘‘गम दिये मुस्तकिल कितना नाजुक है दिल ये ना जाना..’’इत्यादि अपने इऩ ही बेहतरीन गानों के लिए आज भी वो लोगों के दिल और दिमाग पर राज करते हैं

बता दे कि कुंदन लाल सहगल को उनके चाहने वालें के.एल. सहगल के नाम से बुलाते हैं भारतीय सिनेमा जगत के महान पा‌र्श्व गायक कुंदन लाल सहगल का जन्म 11अप्रैल 1904 को जम्मू के नवाशहर में हुआ था और उनके पिता जम्मू शहर में न्यायालय के तहसीलदार थे। बता दे कि बचपन से ही सहगल को को गाना गाने का शौक था और उनका बचपन से पूरा रुझान गीत संगीत की ओर था। बता दे कि सहगल का ही नहीं उनकी माता को भी संगीत में काफी रुचि थी।

सहगल की मां केसरीबाई कौर धार्मिक कार्यकलापों के साथ-साथ संगीत में भी काफी रूचि रखती थीं। कुंदन लाल सहगल अक्सर अपनी मां के साथ भजन-कीर्तन जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में जाया करते थे और अपने शहर में हो रही रामलीला के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया करते थे।

बता दे कि हिंदी सिनमा जगत में सहगल आज भी अपने गानो के चलते एक काफी जाने जाते हैं पर आपको यें जानकर काफी हैरानी होगी कि इतने महान पा‌र्श्व गायक ने कभी भी किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नही ली थी लेकिन, सबसे पहले उन्होंने संगीत के गुर एक सूफी संत सलमान युसूफ से सीखे। बचपन से ही सहगल में संगीत की काफी समझ थी और एक बार सुने हुये गीतों के लय को वह बारीकी से पकड़ लेते थे।पर सहगल की जिंदगी में एक ऐसा भी वक्त आया जब सहगल को सेल्समैन की नौकरी भी करनी पड़ी थी जी हां एक समय में सहगल ने अपनी शिक्षा को बीच में ही छोड़ दिया औऱ उसके बाद उन्हें अपने जीवन यापन के लिए रेलवे में टाइमकीपर की छोटी सी नौकरी भी की थी। बाद में उन्होने रेमिंगटन नामक टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी भी की।

बता दे कि सहगल को अपने करियर की उड़ान करने का मौका उस वक्त मिला जब सहगल ने वर्ष 1930 में कोलकाता के न्यू थियेटर के बी.एन.सरकार ने उन्हें 200 रुपये मासिक पर अपने यहां काम करने का मौका दिया। यहां उनकी मुलाकात संगीतकार आर.सी.बोराल से हुई जो सहगल की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए। धीरे- धीरे सहगल न्यू थियेटर में अपनी पहचान बनाते चले गये। शुरूआती दौर में बतौर अभिनेता वर्ष 1932 में प्रदर्शित एक उर्दू फ़िल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ में उन्हे काम करने का मौका मिला। वर्ष 1932 में ही बतौर कलाकार उनकी दो और फ़िल्में ‘सुबह का सितारा’ और ‘ज़िन्दा लाश’ भी प्रदर्शित हुई लेकिन, इन फ़िल्मों से उन्हें कोई ख़ास पहचान नहीं मिली।
फिर साल 1933 में सहगल के करियर ने गति पकड़ी और 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पुराण भगत’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक सहगल कुछ हद तक फ़िल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। इसके साथ वर्ष 1933 में ही प्रदर्शित फ़िल्म ‘यहूदी की लड़की’, ‘चंडीदास’ और ‘रूपलेखा’ जैसी फ़िल्मों की कामयाबी से उन्होंने दर्शकों का ध्यान अपनी गायकी और अदाकारी की ओर आकर्षित किया।

देवदास के बाद बुंलदियों पर जा पहुंचे
साल 1935 में शरतचंद्र चटर्जी के लोकप्रिय उपन्यास पर आधारित पी.सी.बरूआ निर्देशित फ़िल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक अभिनेता सहगल शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। इस फ़िल्म मे उनके गाए गीत भी काफी लोकप्रिय हुये। इस बीच सहगल ने न्यू थियेटर निर्मित कई फ़िल्मों में भी काम किया। बंगला फ़िल्मों के साथ-साथ न्यू थियेटर के लिये उन्होंने 1937 में ‘प्रेसिडेट’, 1938 में ‘साथी’ और ‘स्ट्रीट सिंगर’ और साल 1940 में ‘ज़िंदगी’ जैसी कई कामयाब फ़िल्मों को अपनी गायकी और अदाकारी से सजाया। बाद में 1941 में सहगल मुंबई के रणजीत स्टूडियो से जुड़ गये। 1942 में प्रदर्शित उनकी ‘सूरदास’ और 1943 में ‘तानसेन’ ने टिकट खिड़की पर सफलता का नया इतिहास रचा। 1944 में उन्होंने न्यू थियेटर की हीं निर्मित फ़िल्म ‘मेरी बहन’ में भी काम किया। ‘मेरी बहन’ का गाया उनका गीत ‘’दो नैना मतवारे..’’ सिने प्रेमी आज भी नही भूल पाये हैं।

वर्ष 1946 में सहगल ने संगीत सम्राट नौशाद के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ‘शाहजहां’ में ‘‘गम दिये मुस्तकिल..’’ और ‘’जब दिल हीं टूट गया..’’ जैसे गीत गाकर अपना अलग समां बांधा। सहगल के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी संगीतकार पंकज मल्लिक के साथ खूब जमी। पंकज मल्लिक के अलावा सहगल के पसंदीदा संगीतकारों में सी.बोराल, खेम चंद्र प्रकाश और नौशाद जैसे चोटी के संगीतकार शामिल हैं।
कुंदन लाल सहगल को लोग आज भी उतना ही प्यार करते है और उऩके गानों को उतना ही पसंद करते हैं जितना कि तब किया करते थे आज कुंदन लाल सहगल हमारें और आप के दिलों में अपनी आवाज के चलते राज करते हैं।

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