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मायावती के इस्तीफे के पीछे है बड़ा दांव…जाने इस पूरी खबर में

Mayawati, resignation

आखिरकार मॉनसून सत्र के दूसरे दिन मायावती के इस्तीफे के दांव ने एक बार फिर मायावती को सुर्खियों में लाकर खड़ा कर दिया है। बीते 18 तारीख को जब राज्यसभा का सदन शुरू ही हुआ था कि प्रश्नकाल में बसपा सुप्रीमों हाल में सहारनपुर में हुई हिंसा को जोड़ते हुए देश में दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ हो रही हिंसा के मामले को उठाकर सरकार के ऊपर हमलावर हो रही थीं तभी उनका प्रश्नकाल का वक्त समाप्त हो गया। सभापति ने उन्हे बीच में रोका तो बसपा सुप्रीमों का पारा चढ़ गया।

Mayawati, resignation
Big stakes behind Mayawati’s resignation

सदन में इस्तीफे की धमकी देते हुए उठकर चली गईं। सदन के बाहर पत्रकारों के सवालों का जबाब देते हुए उन्होने कहा कि अगर सदन में हम अपने समाज के हितों के सवाल नहीं पूछ सकते हो सदन की सदस्यता का क्या मतलब है। इसके बाद शाम तक उन्होने ने राजनीतिक मंच के भाषण सरीखा एक त्यागपत्र भी भेज दिया।

आखिर क्यूं मायावती इतनी उग्र हो गई
मॉनसून सत्र में जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई उसी के साथ ही प्रश्नकाल में मायावती ने हाल में हुई सहारनपुर में हिंसा के मामले में सरकार पर आरोप लगाने के लिए जैसी ही बोलना शुरू किया और आरोपों की झड़ियां ही लगा रही थी कि सदन में उनको दिया गया समय पूरा हो गया। उपसभापति ने उनको बोलने से रोकने का प्रयास किया लेकिन मायावती को ये बात काफी नागवार गुजरी उन्होने पहले तो उपसभापति से तीखी बहस करनी चाही इसके बाद जब उनको लगा कि उन्हें बोलने का समय नहीं आगे मिलेगा तो इस्तीफे की धमकी तक दे डाली। बाहर आकर पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए उन्होने कहा कि हम सदन के जरिए सरकार से ये सवाल पूछना चाह रहे थे कि आखिर देश में ये कैसा माहौल बनता जा रहा है। जिस पर सरकार का कोई अंकुश लगता नहीं दिख रहा है। लेकिन जब सदन में मुझे बोलने से रोक दिया गया तो मुझे जहां पर मैं अपने समाज की बात नहीं रख सकती वहां नहीं रहना चाहिए तो मै उठकर चली आई।

माया के इस्तीफे का राज
सहारनपुर में हुई हिंसा के तार मायावती और उनकी पार्टी बसपा से जोड़कर देखे जा रहे हैं। इस मामले में जांच चल रही है। इस पूरे कांड का मास्टर माइंड पुलिस की गिरफ्त में है। मायावती और उनके भाई के साथ उनकी पार्टी पर ये आरोप लग चुके हैं कि वो इस गैर राजनीतिक संगठन की आर्थिक मदद कर रहे थे। क्योंकि सहारनपुर में हुई हिंसा की आग सबसे अधिक मायावती के जाने के बाद ही भड़की थी। ये पुलिस की जांच रिपोर्ट में भी आया है। अब मायावती अपने आपको बचाने के लिए इस सहारनपुर हिंसा के नाम पर अपनी राजनीतिक गोट बैठाने की कोशिश कर रही हैं। क्योंकि 2012 से मायावती के दिन बुरे होते जा रहे हैं। पहले सपा ने सत्ता छीनी तो 2014 में लोकसभा में एक भी खाता तक नहीं खुला और 2017 विधानसभा में 50 सीटें भी ना आ पाईं। यानी जिस दलित वोट पर बहन जी राजनीति कर रही थीं वो उनके पास से खिसक रहे हैं। अब अपने कैडरों के साथ मायावती को ये भी जताना था, कि दलितों के लिए कुर्सी तक छोड़ सकती हैं। वैसे भी मायावती के राज्यसभा का कार्यकाल अप्रैल 2018 तक का ही है।

ऐसे में उनका ये भी सोचना है कि दुबारा राज्यसभा में वापसी के बजाय 2019 की तैयारी पर जोर दिया जाये क्योंकि अब सत्ता में वापसी का कोई रास्ता तो बचा नहीं है। क्योंकि भाजपा ने रामनाथ कोविंद के रूप में दलित चेहरे को राष्ट्रपति के लिए चुनकर उत्तर प्रदेश में मायावती के दलित वोटों में एक बार बड़ी सेंधमारी की है। अब मायावती अपने संगठन को फिर से खड़ा कर 2019 के समर की तैयारी करने की फिराक में है। इसके साथ ही जनता के बीच उनकी हितैषी बनने का इससे बेहतर मौका नहीं मिल सकता था।

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