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भूटान से बांग्लादेश के लिए ‘आईडब्यूएआई के’ मालवाहक पोत हुआ रवाना

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  • संवाददाता, भारत खबर

नई दिल्ली। केंद्रीय जहाजरानी (स्वतंत्र प्रभार), रासायनिक एवं उर्वरक राज्य मंत्री, मनसुख मंडाविया ने आज एक विशेष और प्रथम अभियान के तहत भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के एक मालवाहक पोत को डिजिटल रूप से हरी झंडी दिखाते हुए रवाना किया। यह मालवाहक पोत भूटान से बांग्लादेश के लिए पत्थरों की आपूर्ति करेगा।
इस मालवाहक पोत-एमवीएएआई को भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल जलमार्ग के तहत ब्रह्मपुत्र नदी के माध्यम से असम के धुबरी से रवाना किया गया है और यह बांग्लादेश के नारायणगंज तक की यात्रा करेगा। यह प्रथम अवसर है जब किसी भारतीय जलमार्ग का उपयोग दो देशों के बीच माल-परिवहन के लिए पारगमन के रूप में किया जा रहा है।
इन पत्थरों को भूटान के फुंटशोलिंग से ट्रकों के माध्यम से 160 किलोमीटर की दूरी तय करके असम स्थित आईडब्ल्यूएआई की धुबरी जेट्टी तक पहुंचाया गया। अब तक, भूटान बांग्लादेश को पत्थरों की अधिकांश आपूर्ति सड़क मार्ग के माध्यम से करता रहा है। इस मालवाहक पोत के माध्यम से 1000 मीट्रिक टन पत्थरों को ले जाया जा रहा है, जबकि सड़क मार्ग से इतने माल को ले जाने के लिए 70 ट्रकों की आवश्यकता होगी।
इस अवसर अपने संबोधन में, मंडाविया ने कहा कि यह ऐतिहासिक क्षण है और अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से माल परिवहन को बढ़ावा देने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना को साकार करते हुए आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह कदम भारत के साथ-साथ भूटान और बांग्लादेश के लिए भी लाभकारी होगा और पड़ोसी देशों के बीच संबंधों को मजबूत करेगा। उन्होंने कहा कि इस जलमार्ग के उपयोग से माल परिवहन में 8 से 10 दिन का कम समय लगने के साथ-साथ परिवहन लागत में भी 30% तक की कमी आएगी और यह अत्यधिक पर्यावरण अनुकूल भी होगा। मंडाविया ने कहा कि इस नवीन विकास से न केवल पड़ोसी देशों के साथ हमारे संबंध मजबूत बनेंगे, बल्कि यह हमारे पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक वैकल्पिक मार्ग भी खोलेगा, जिससे देश के अन्य हिस्सों से इन स्थानों तक माल पहुंचाना आसान और सस्ता हो जाएगा।

आईडब्ल्यूएआई के अध्यक्ष प्रवीर पांडे ने जानकारी दी कि इस व्यवस्था से नौवहन क्षेत्र में एक सुनिश्चित मसौदे को बनाए रखने के लिए पूंजी निकर्षण पर जोर दिया गया है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में कम से कम 10 और राष्ट्रीय जलमार्ग विकासाधीन हैं।

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