नई दिल्ली। माघ मास की गुष्त नवरात्रि की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी मनाई जाती है और इसे ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस बार बसंत पंचमी 1 बजे से शुरु होकर मध्य रात्रि तक है।
इस दिन धरती प्राय: फूलों और हरे पत्तों के साज्य सज्जा से परिपूर्ण रहती है और इसी दिन मां सरस्वती या यूं कहे कि विद्या की अधिष्धात्री देवी का विधि विधान पूजन किया जाता है। एक मान्यता के अनुसार ये भी कहा जाता है कि बसंत पंचमी एक आभिजित मुहूर्त के रुप में स्थापित है और इस दिन गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है।
बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का विधि विधान से पूजन करने के बाद पित्त वस्त्र का परिधान पहनाया जाता है और तत्पश्चात विभिन्न प्रकार के देवताओं का आह्वाहन करते हुए विद्या की देवी का स्मरण किया जाता है। जिससे समग्र रुप से सद्बुद्धि और बौद्धिक प्रकाश सबके अंदर समाहित करें ऐसा उनसे निवेदन किया जाता है।
देखा जाता है कि धरती भी पुन: नव वस्त्रों का एक प्रकार से अर्जन कर चुकी होती है और फिर से उन्हीं नव वस्त्रों के साथ-साथ इस धरती का भी पूजन किया जाता है क्योंकि ये धरती अन्नदात्री है। यही अन्नदात्री धरती एक प्रकार से शोभायमान होती है और पूर्ण रुप से बसंतमय हो चुकी होती है।
एक मान्यता के अनुसार कामदेव का भी इसी महीने में मन के अंदर सुचारु रुप से परिवहन होता है। अर्थात् आकर्षण का ये महीना किसी ना किसी रुप में हमारी समस्त व्यवस्था और परंपरा से पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता में इसी महीने में हम ये देखते है कि जब कामदेव की बात आती है तो कामदेव से संबंधित वैंलेनटाइन डे का सेलिब्रेशन 15 दिन पहले शुरु हो जाता है।
(राजेश त्रिपाठी, प्रोफेसर दर्शन एवं ज्योतिष, दिल्ली यूनिवर्सिटी)