विश्व प्रसिद्ध चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी है। 15 मई यानि की कल सुबह 4.30 बजे बाबा बद्री विशाल के भी कपाल खुल जाएंगे। लॉकडाउन की वजह से कपाट खोलने की तारीख बदली गई है। पहले 30 अप्रैल को कपाट खुलने थे।
कोरोना वायरस के चलते पहली बार केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तारीखों में 15 दिन से ज्यादा का अंतर रहा है। केदारनाथ के कपाट 29 अप्रैल को खुल चुके हैं।
कल सुबह साढ़े 4 बजे बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के वक्त मंदिर में मुख्य पुजारी समेत सिर्फ 27 लोगों को ही जाने की अनुमति मिली है।शुक्रवार सुबह 4.30 बजे गणेश जी की पूजा के बाद कपाट खोले जाएंगे।
गणेश जी की पूजा के बाद कपाट खुलने पर भगवान बदरीनाथ के साथ ही भगवान धनवतंरि की भी विशेष पूजा की जाएगी। आयुर्वेद के देवता धनवंतरि की पूजा दुनिया भर में फैली महामारी को खत्म करने के लिए की जाएगी।
इस वक्त श्रद्धालुओं को मौजूद रहने की इजाजत नहीं होगी। ऐसा पहली बार हो रहा है कि भगवान बद्रीनाथ के कपाट बिना श्रद्धालुओं के ही खुल रहे हैं।
आपको बता दें कल भगवान बद्री विशाल के मुख्य पुजारी रावल ईश्वर प्रसाद नंबुदरी, आद्य गुरु शंकराचार्य की गद्दी डोली और गाडू घड़ा के साथ पांडुकेश्वर पहुंचे थे।
गुरुवार को शंकराचार्य की गद्दी डोली, उद्धव जी और कुबेर जी की पालकी के साथ मुख्य पुजारी रावल, धर्माधिकारी, अपर धर्माधिकारी, सीमित संख्या में हकहकूकधारी बदरीनाथ के लिए रवाना होंगे। जिसके बाद कल शुभ मोहुर्त पर कपाट खुलेंगे।
बद्री विशाल मंदिर के कपाट खुलने से पहले सारी तैयारियां कर ली गई हैं।सिंहद्वार को ऋषिकेश से आए फूलों से सजाया गया है। जिसकी वजह से बाबा बद्री विशाल बहुत सुंदर दिख रहा है।
हालाकि इस खूबसूरत और मनमोहक नजारे को आम लोग नहीं देख पाएंगे। कोरोना के चलते आम लोगों के लिए चारधाम यात्रा बंद की हुई है।
लॉकडाउन के खत्म होने के बाद पहले की ही तरफ यात्री चार धाम यात्रा को कर सकेंगे। तब तक सभी को इंतजार करना पड़ेगा।
बाबा बद्री विशाल से जुड़ी हुई ये जानकारी क्यों है जरूरी?
नागराजनर-नारायण का धाम बदरीनाथबदरीनाथ धाम अलकनंदा नदी के तट पर स्थित दो पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में स्थित है। मंदिर में भगवान की मूर्ति शालिग्राम से निर्मित है।
माना जा ता है कि शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु की इस प्रतिमा को आदि शंकाराचार्य ने 8वीं शताब्दी में नारद कुंड से निकालकर स्थापित किया था। शालिग्राम भगवान विष्णु का ही एक रूप है, जिसे राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा के शाप के कारण भगवान विष्णु ने धारण किया था।
माना जाता है कि शंकाराचार्य द्वारा स्थापित किए जाने के बाद भगवान विष्णु की यह मूर्ति एक बार विलुप्त हो गई थी। फिर उसके बाद संत रामानुजाचार्य ने मूर्ति को फिर से स्थापित करवाया।
फिर 16वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा ने बदरीनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया और मूर्ति को गुफा से निकालकर मंदिर में स्थापित करवाया।
ऐसा है भगवान का रूपभगवान बदरीनाथ की मूर्ति बदरी वृक्ष यानी बेर के पेड़ के नीचे सोने की चंदवा में रखा गया है। भगवान की मूर्ति योगमुद्रा में है। भगवान की 4 भुजाएं हैं। एक हाथ में चक्र, एक में शंख और दो अन्य हाथ में उनकी गोद में योग मुद्रा स्थित हैं।
बदरीनाथ की मूर्ति के ललाट पर हीरा जड़ा हुआ है। जिसे देखकर भक्तजन धन्य हो जाते हैं। बदरीनाथ की मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि सतयुग की समाप्ति के बाद भगवान ब्रह्माजी ने मूर्ति यहां स्वयं गुफा में स्थापित की थी।
कलियुग का अंत करीब आने पर नन और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ भगवान की पूजा आदि बदरी मंदिर में होगी।
https://www.bharatkhabar.com/aliens-airbase-found-aviation-plate-seen-in-aksai-china/
तो देखा आपने बद्री विशाल का मंदिर क्यों और किस लिए प्रसिद्ध है। लेकिन इस बार आपको चारधाम यात्रा करने के लिए इंतजार करना पड़ेगा।