नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में वाजपेयी की ऐसी शख्सियत थी कि सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक नेता उनका कायल था। इतना ही नहीं मुस्लिम समुदाय बीजेपी से नफरत करता पर अटल बिहारी वाजपेयी से मुहब्बत करता था। वाजपेयी के अंदाज और खूबियां उन्हें बीजेपी के भारत के दूसरे नेताओं से अलग करती हैं।
कुशल वक्ता
वाजपेयी को शब्दों का जादूगर माना जाता था. सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों उनकी वाकपटुता और तर्कों के कायल रहे. वाजपेयी के असाधारण व्यक्तित्व को देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा. नेहरू ने 1961 में वाजपेयी को नेशनल इंटेग्रेशन काउंसिल में नियुक्ति दी. 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी के लिए वाजपेयी को चुना था. विपक्ष के नेता पर इस भरोसे को दुनिया ने आश्चर्य से देखा था।
उदारवादी व्यक्तित्व
अटल बिहारी वाजपेयी संघ से राजनीति में आए थे. बावजूद इसके उन्होंने अपने आपको किसी विचारधारा के रूप में स्थापित नहीं होने दिया. उनके प्रधानमंत्रित्व काल में कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक के बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था. कश्मीर को लेकर अटल नीति को लेकर आज भी बात होती हैं, जिसमें उन्होंने जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत की बात की थी. इतना ही नहीं वे लखनऊ जैसी संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करते थे, जहां पांच लाख से ज्यादा मुस्लिम वोट थे।
कवि हृदय
अटल बिहारी वाजपेयी के दिल में एक राजनेता से कहीं ज्यादा एक कवि बसता था. उनकी कविताओं का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता रहा. इसीलिए जब उन्होंने अंतिम सांस ली तो लोगों सोशल मीडिया पर वाजपेयी की कविताओं को अपनी वॉल पर लगाया. संसद में लेकर जनसभाओं तक में वह अक्सर कविता पाठ के मूड में आ जाते थे और लोग इसे खूब पंसद भी करते थे।
राजधर्म का संदेश
वाजपेयी में अपने पराए का भेद किए बिना सच कहने का साहस था. इसमें वो तनिक भी नहीं हिचकिचाते थे. गुजरात दंगों के समय तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के लिए दिया गया बयान आज भी मील का पत्थर है. उन्होंने कहा था कि मेरा संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करें. राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं कर सकता. न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर और न संप्रदाय के आधार पर।