नई दिल्ली। भारत रत्न और तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का गुरुवार शाम 5.05 बजे निधन हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी नेता के साथ साथ कवि भी थे और कविता उनको विरासत में मिली थी। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत के कवि थे और खड़ी बोली और ब्रज भाषा में लिखते थे। उन्होंने राष्ट्र और राजनीति के साथ साथ श्रृंगार रास में भी कविताएं लिखीं। अटल बिहारी वाजपेयी ने दो काव्यसंग्रह लिखे – ‘न दैन्यं न पलायनम्’ और ‘मेरी इक्यावन कविताएं’। ‘
ताजमहल पर लिखी थी पहली कविता
अटलजी ने इस किताब में आगे लिखा कि ‘परिवार के अनुकूल वातावरण, सगे-संधियों की देखा-देखी, मैंने भी तुक भिड़ाना शुरू कर दिया। कवि सम्मेलनों में जाने लगा। पहले श्रोता के रूप में और फिर किशोर कवि के रूप में।’
अटलजी आगे लिखते हैं ‘मुझे अपनी पहली तुकबंदियां याद नहीं है, जिस कविता के बारे में मुझे याद है। वो मैंने ताजमहल पर लिखी थी। ये कविता लीक से हटकर थी और उसमें ताज की सुंदरता के बजाय उसके निर्माण के बारे में बताया गया था।’ अटलजी की ये कविता हाई स्कूल की एक पत्रिका में भी छपी थी।
राजनीति की वजह से कविताओं पर ध्यान नहीं दिया : राजनीति में आने के बाद अटलजी कविताओं पर पहले की तरह ध्यान नहीं दे पाते थे और उन्हें लिखने का भी उतना समय नहीं मिल पाता था। अटलजी ने लिखा था कि ‘राजनीति और कविता साथ-साथ नहीं चल सकतीं। राजनीति में भाषण देना जरूरी है जो श्रोताओं को प्रभावित कर सके, इसलिए कविता के लिए वातावरण और समय नहीं मिल पाता है।’
उन्होंने आगे लिखा ‘कभी-कभी मन करता है कि सबकुछ छोड़कर कहीं पढ़ने-लिखने के लिए चले जाऊं, लेकिन ऐसा नहीं कर पाता। दुविधा से भरे जीवन के 7 दशक बीत गए और जो बचे हैं, वो भी इसी तरह बीत जाएंगे।’
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