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अफगानिस्तान में अशरफ गनी ने ली दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ, समारोह में दागे गए रॉकेट

होली 3 अफगानिस्तान में अशरफ गनी ने ली दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ, समारोह में दागे गए रॉकेट

काबूल। अफगानिस्तान में तालिबान-अमेरिका शांति समझौते के साथ ही सियासी उथल-पुथल शुरू हो गई है. अफगानिस्तान में अशरफ गनी ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली. हालांकि, इस दौरान रॉकेट दागे जाने की भी खबर है। अफगानिस्तानी राष्ट्रपति अशरफ गनी को सोमवार को दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ दिलाई गई. हालांकि, शीर्ष पद के लिए अशरफ गनी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी ने उनके शपथ को वैध मानने से इनकार करते हुए ठीक उसी वक्त एक अलग समारोह में राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली।

अफगानिस्तान के स्थानीय चैनल TOLONews के मुताबिक, काबुल स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित हुए गनी के शपथ समारोह में अमेरिका के विशेष राजदूत जालमे खालिजाद और अमेरिकी-नाटो सेना कमांडर जनरल स्कॉट मिलकर समेत अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों भी मौजूद रहे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अशरफ गनी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान रॉकेट भी दागे गए. जब गनी अपना भाषण पूरा कर रहे थे, उस दौरान दो से पांच रॉकेट दागे गए.

राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और अशरफ गनी के विरोधी अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने गनी के शपथ के वक्त ही एक अलग समारोह में खुद शपथ ले ली. कहा जा रहा है कि दोनों अफगानी पक्षों और अमेरिकी राजदूत खालिजाद के बीच समझौते को लेकर वार्ता सफल नहीं हो सकी.

वहीं, तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शहीन ने न्यूज चैनल अलजजीरा को बताया कि दोनों शीर्ष नेताओं के बीच सियासी संघर्ष देश में शांति प्रयासों के लिए अच्छा संकेत नहीं है.

पिछले महीने अफगानिस्तान के चुनाव आयोग ने गनी को विजेता घोषित किया था लेकिन अब्दुल्ला अब्दुल्ला इस जिद पर अड़े रहे कि चुनाव उन्होंने जीता है और वही सरकार बनाएंगे.

गनी और अब्दुल्ला दोनों ने ही अपने शपथ ग्रहण समारोह को स्थगित कर दिया था हालांकि, गनी ने बाद में आगे बढ़ने का फैसला किया.

अफगानिस्तान में नया संकट?

विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान में नए राजनीतिक संकट की वजह से अफगान के तमाम पक्षों के बीच मंगलवार को होने वाली निर्धारित वार्ता टल सकती है. बता दें कि अफगानिस्तान में दशकों तक चले गृह युद्ध के अंत के लिए अमेरिका-तालिबान शांति समझौता हुआ है, अगले चरण में अब अफगान सरकार समेत अन्य पक्ष आपस में वार्ता करेंगे.

अफगानिस्तान मामलों के जानकारों का कहना है कि इससे ना केवल अंर्त-अफगान वार्ता में निश्चित तौर पर देरी होगी बल्कि इस सियासी संघर्ष की वजह से तालिबान से बातचीत के लिए सरकार समर्थित प्रतिनिधिमंडल और संवेदनशील मुद्दों पर इसके रुख को लेकर और भी जटिलताएं सामने आएंगी.

विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की तमाम कोशिशों के बावजूद अशरफ गनी और तमाम विपक्षी दलों के बीच मतभेद दूर नहीं किए जा सकते हैं चाहे दोनों पक्ष कुछ हद तक समझौता करने के लिए तैयार भी हो जाए.

काबुल में नई राजनीतिक लड़ाई अफगानिस्तान के कमजोर लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि तालिबान से शांति समझौते के बाद अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान से वापसी की तैयारी कर रही हैं. दूसरी तरफ, यह राजनीतिक संकट ऐसे वक्त में आया है जब अफगानिस्तान की सरकार तालिबान के साथ वार्ता करने की भी तैयारी कर रही है.

अमेरिकी राजदूत जालमय खालिजाद ने गनी और अब्दुल्ला के बीच रविवार को एक बैठक करवाई ताकि उन्हें शपथ ग्रहण समारोह टालने के लिए मनाया जा सके. गनी और अब्दुल्ला अमेरिका समर्थित पूर्ववर्ती सरकारों में शक्ति के बंटवारे के समझौते के तहत अपनी भूमिका अदा कर चुके हैं. 2014 में अफगानिस्तान में हुए चुनाव को लेकर धांधली के आरोप भी लगे थे.

बता दें कि अफगानिस्तान की चुनावी व्यवस्था के तहत नतीजे घोषित होने के 30 दिनों के भीतर राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह संपन्न कराना अनिवार्य है.

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