उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी और अन्य आरोपियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. अदालत ने कहा कि वो नहीं चाहते कि रिहाई में दो दिनों की देरी हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वो निचली अदालत को जमानत की शर्तें लगाने को कहते तो और दो दिन लग जाते, इसलिए हमने 50,000 का निजी मुचलका जेल प्रशासन के पास भरने को बोल दिया है. शीर्ष अदालत ने जेल प्रशासन और कमिश्नर को आदेश का पालन होने को सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं.
बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अर्नब को जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद वो सुप्रीम कोर्ट गए थे.
अर्नब के वकील ने दी ये दलील
अर्नब का केस रख रहे वकील हरीश साल्वे ने जमानत के पक्ष में दलील रखते हुए कहा था कि ‘क्या अर्नब गोस्वामी आतंकवादी हैं? क्या उन पर हत्या का कोई आरोप है? उनको जमानत क्यों नहीं दी जा सकती? उन्होंने तर्क रखा कि ‘आत्महत्या के लिए आत्महत्या करने का इरादा होना चाहिए और यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. इस मामले में कोई इरादा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में कहा है कि आत्महत्या के लिए इरादा होना चाहिए जो यहां नहीं है. यदि कोई व्यक्ति महाराष्ट्र में आत्महत्या करता है और सरकार को दोषी ठहराता है, तो क्या मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया जाएगा?’
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा-
सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के 2018 के मामले में महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल है.
न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय है. शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राज्य सरकारें कुछ लोगों को विचारधारा और मत भिन्नता के आधार पर निशाना बना रही हैं.
अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है जिसमें उच्च न्यायालय जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं.’