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बागपतः सिनौली में हुई एतिहासिक खोज, मिली महाभारत कालीन कब्रगाह और पुराने रथ-मुकुट

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उत्तर प्रदेश के बागपत में पुरातात्विक स्थल सिनौली में एक एतिहासिक खोज के दौरान चार से पांच हजार साल पुरानी मानव सभ्यता के चौंकाने वाले अवशेष मिले हैं। आपको बता दें कि बृहस्पतिवार को उत्खनन स्थल पर भारत के तमाम मीडिया संस्थानों के रिपोर्टर बाइट लेने के लिए खोज स्थल में जमावड़ा लगाए थे। वहीं खोज से उत्साहित एएसआई अधिकारी भी मीडिया के सामने बोलने के लिए बेसब्र दिखे। भीड़ के साथ किसान श्रीराम शर्मा भी खड़े थे जिनकी पहल पर ये खोज की गयी थी।

 

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किसान श्रीराम शर्मा का प्रयास

गौरतलब है  कि किसान श्रीराम शर्मा के खेत में एक बार उनको कॉपर के कुछ टुकड़े मिलले थे तभी से उनके मन में जिज्ञासा हुई कि यहां पर पुरातत्व विभाग द्वारा खोज की जानी चाहिए और उन्होंने इसकी  जानकारी तुरंत एएसआई अधिकारियों को दी। श्रीराम शर्मा के प्रयास से ही उत्खनन विभाग ने इस पर काम करना शुरू कर दिया।

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सन् 2005 में 13 माह चले उत्खनन कार्य से लोग जागरूक हुए

श्रीराम शर्मा के अनुसार सन् 2005 में लगभग 13 माह तक उत्खनन कार्य हुआ था। और वहां पर काफी महत्वपूर्ण प्राचीन अवशेष और 116 कंकाल प्राप्त हुए थे। उत्खनन के बाद से ग्रामीण जागरूक होने लगे और 2007 में डीआईजी विजय कुमार गुप्ता और इतिहासकार अमित राय जैन ने दुबारा सिनौली का निरीक्षण कर अन्य महत्वपूर्ण प्राचीन कालीन जानकारी मिलने की बात कही। श्रीराम शर्मा का कहना है कि सिनौली का नाम विश्व स्तर पर सुर्खियों पा रहा है। इस खोज से वह बहुत खुश हैं। हलाकि उत्खनन के चलते उनका खेत खाली रहा, लेकिन इसके लिए किसान ने  मुआवजे की कोई इच्छा जाहिर की वह चाहते हैं कि आसपास भूमि पर हो जिससे और भी अवशेष प्राप्त हो सकते है।

 

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रथ और ताबूत महाभारत कालीन संस्कृति से संबंधित हैं

सिनौली के उत्खनन में मिले रथ और ताबूत फिर से महाभारत कालीन संस्कृति को बयां करते हैं।लोगों का मानना हैं कि तब के वाक प्रस्थ का कालांतर में आज बागपत हो गया है। महाभारत के उद्योग पर्व में लिखा है कि कौरवों से संधि वार्ता के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने वृक स्थल नाम जगह पर विश्राम किया था।तब यहां के लोगों ने श्रीकृष्ण का आतिथ्य, वाक, पटुता किया श्रीकृष्ण खुश हुए और इस क्षेत्र का नाम वाक प्रस्थ रख दिया।उत्खनन में पांच हजार साल पुरानी सभ्यता से जाहिर होता है कि तब भी इस क्षेत्र के लोग तांबे,सोने के जानकार रहे है। और महाभारत के धर्म युद्ध से इस क्षेत्र का सीधा जुड़ाव है।

 

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2005-06 हडप्पा कालीन कब्र गाह के मिलने स्वीकार्यता बढ़ी

प्रमाण बताते हैं कि सिंधु सभ्यता के समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश वजूद में था सिनौली में साल 2005-06 हडप्पा कालीन कब्र गाह मिली जिसने विश्वसनीयता को बढ़ा दिया। आपको बता दें कि यमुना नदी से 12 किलोमीटर दूर सिनौली में उत्खनन के दौरान तांबे की नक्काशी का शाही ताबूत, कब्र गाह में दो रथ और आठ नर कंकाल मिलने से सिद्ध हो गया है कि उत्तर प्रदेश की संस्कृति पांच हजार पहले भी थी। जाहिर है कि इस क्षेत्र के लोग लड़ाकू रहे होंगे।

 

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एमएम कॉलेज मोदीनगर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. केके शर्मा की राय

प्रोफेसर के अनुसार “महाभारत के उद्योग पर्व में लिखा है कि भगवान श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर मथुरा से यमुना नदी के किनारे होते कौरवों से संधि वार्ता के लिए हस्तिनापुर गए थे”।रास्ते में वह वृक स्थल नामक जगह पर रुके ,तो लोगों ने उनका आदर सत्कार किया। भगवान श्रीकृष्ण ने लोगों की वाक पटुता,बहादुरी,ईमानदारी खुश होकर इस क्षेत्र का नाम वाक प्रस्थ कर दिया

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