लखनऊ: यूपी में मोहर्रम को लेकर गाइडलाइन जारी कर दी गई है। कोरोना को देखते हुए इस बार जिलों में मुहर्रम जुलूस या ताजिया की इजाजत नहीं दी गई है। डीजीपी ने इसको लेकर जिलों के एसपी को निर्देश दे दिए हैं।
हालांकि, मोहर्रम की गाइडलाइन में प्रशासन की भाषा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। गाइडलाइन में भाषा के इस्तेमाल को लेकर शिया समुदाय के धर्मगुरुओं में आक्रोश है। शिया मौलाना कल्बे सिब्तैन नूरी ने गाइड लाइन के ड्राफ्ट को तुरंत बदलने की मांग है।
गाइडलाइन के ड्राफ्ट को बदलने की मांग
मौलाना कल्बे सिब्तैन नूरी ने कहा कि, मोहर्रम के संबंध में पुलिस प्रशासन द्वारा जारी गाइडलाइन से शिया समुदाय के धार्मिक जज़्बात को ठेस पहुंची है। इसमें मोहर्रम व शिया समुदाय पर सीधे तौर पर बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाए गये हैं। खासकर पैरा नंबर 2 और उसके बाद के पैरा, इस गाइडलाइन के ड्राफ्ट को तुरंत बदला जाए।
उन्होंने कहा कि, शिया उलमा से गुज़ारिश है कि मिल बैठकर कोई फ़ैसला लें। हम शांतिप्रिय समुदाय हैं, लेकिन इस तरह का ड्राफ्ट बर्दाश्त नहीं है। अभी मोहर्रम शुरू भी नहीं हुआ और हमारे जज़्बात से छेड़खानी शुरू कर दी। सरकार जांच करे कि इस तरह का ड्राफ्ट किसने बनाया है। मौलाना कल्बे ने क़ायदे मिल्लत मौलाना कल्बे जवाद नक़वी और दीगर आलिमों व ज़ाकिरों से गुज़ारिश की है कि इस ड्राफ्ट को रद्द करने की मांग करें।
पैरा नंबर 2 को लेकर आक्रोश
दरअसल, पुलिस प्रशासन की गाइडलाइन के पैरा नंबर 2 में लिखा है कि, मोहर्रम के अवसर पर शिया समुदाय के लोगों द्वारा तबरां पढ़े जाने पर सुन्नी समुदाय (देवबन्दी एवं अहले हदीस) द्वारा कड़ी आपत्ति व्यक्त की जाती है, जो इसके प्रतिउत्तर में “मदहे-सहाबा” पढ़ते हैं, जिसपर शियाओं द्वारा आपत्ति जाती है। शिया वर्ग के असामाजिक तत्वों द्वारा सार्वजनिक स्थानों, पतंगों एवं आवारा पशुओं पर तबर्रा लिखे जाने तथा देवबन्दी/अहले हदीस फिरकों के सुन्नियों के असामाजिक तत्वों द्वारा इन्हीं तरीकों से अपने खलीफाओं के नाम लिखकर प्रदर्शित करने पर इन दोनों फिरकों के मध्य व्याप्त कटुता के कारण विवाद संभावित रहता है।