अमेरिका ने संसद में एक ऐसा विधेयक पेश किया है जिसके पारित होने से भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। भारत में आधे से ज्यादा कॉल सेंटर अमेरिका के हैं, और इन कॉल सेंटर्स में काम करने वाले लाखों भारतीयों की नौकरीयों पर खतरा मंडरा रहा है। विधयेक में प्रस्ताव किया गया है कि भारत जैसे देशों में कॉल सेंटर के कर्मचारियों को अपने कार्यस्थान की जानकारी देनी होगी। इसके अलावा उन्हें अमेरिकी ग्राहकों की मांग पर उनके कॉल सेंटर अमेरिका स्थित सर्विस एजेंट को ट्रांसफर करने का अधिकार भी देना होगा।
यह नया विधेयक अमेरिका के ओहियो प्रांत के सीनेटर शेरड ब्राउन ने संसद में पेश किया। इसमें यह भी प्रावधान है कि कॉल सेंटर जॉब्स को आउटसोर्स करने वाली कंपनियों की लिस्ट सार्वजनिक की जाएगी। जो कंपनियां जॉब्स आउटसोर्स नहीं करती हैं उन्हें फेडरल कॉन्ट्रैक्ट्स में तरजीह दी जाएगी।
सीनेटर ब्राउन ने संसद में कहा कि कॉल सेंटर की जॉब काफी कमजोर होती है। अमेरिका की बहुत सारी कंपनियों ने यहां से अपने कॉल सेंटर बंद कर भारत समेत कई दूसरे देशों में कॉल सेंटर्स खोल दिए हैं। अमेरिकी ट्रेड और टैक्स नीति ने कॉरपोरेट बिजनेस मॉडल को बढ़ावा दिया है। इससे कंपनियां अमेरिका की बजाय दुसरे देशों से कॉल सेंटर की नौकरियां आउॉसोर्स कर रही हैं। इससे अमेरिकी कर्मचारी बेरोजगार हो रहे हैं, इसलिए ज़रुरत है कि हमें अपने कर्मचारियों के योगदान को अहमियत दें, न कि बेरोजगार कर नौकरी दूसरे देशों को ट्रांसफर कर दें।
अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत और फिलीपींस कॉल सेंटर जॉब्स आउटसोर्स के लिए सबसे पसंदीदा जगह हैं। अब तो अमेरिकी कंपनियां मिस्र, सऊदी अरब, चीन और मैक्सिको में भी अपने कॉल सेंटर खोल रही हैं। यह दावा अमेरिका की सबसे बड़ी कम्युनिकेशन और मीडिया लेबर यूनियन ‘कम्युनिकेशन वर्कर ऑफ अमेरिका’ की एक रिपोर्ट में किया गया है।
बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट इंडस्ट्री के मामले में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में से एक है। आईटी उद्योग की शीर्ष संस्था नैसकाॅम के मुताबिक भारत को सालाना करीब 1.82 लाख करोड़ रुपए की कमाई होती है। इसमें अमेरिकी बाजार से होने वाली कमाई का बड़ा योगदान है। भारत की आर्थिक तरक्की में भी कॉल सेंटर इंडस्ट्री का अहम रोल रहा है। जॉब्स आउटसोर्स करने वाली कंपनियों की लिस्ट सार्वजनिक होगी। जो जॉब्स आउटसोर्स नहीं करती हैं, उन्हें तरजीह फेड कॉन्ट्रैक्ट्स में दी जाएगी