featured दुनिया

अमेरिका:  ग्रीन कार्ड को लेकर भारतीयों परिवारों की उम्मीदों को लगा झटका, जाने कैसे

अमेरिका:  ग्रीन कार्ड को लेकर भारतीयों परिवारों की उम्मीदों को लगा झटका, जाने कैसे

नई दिल्ली। अमेरिकी सेनेट ने उन दो में से एक बिल को ब्लॉक कर दिया है जिनमें अलग-अलग देशों के लिए जारी किए जाने वाले ग्रीन कार्ड की सीमा हटा दी गई थी। इस फैसले से कई भारतीयों परिवारों की उम्मीदों को झटका लगा है जिनके बच्चे 21 साल की सीमा को पार कर चुके हैं या करने वाले हैं। बच्चे जब 21 साल के हो जाएंगे, वे एच-4 वीजा के हकदार नहीं रह जाएंगे, जो कि डिपेंडेंट को मिलता है और यह अमूमन एच-1बी वीजाधारकों के बच्चों को दिया जाता है।

फिलहाल वे इस उम्र तक पढ़ाई कर रहे होते हैं। उनके पास अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट्स के लिए दिए जाने वाले एफ-1 वीजा को पाने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं बचता है। वे या तो अमेरिका में पढ़ाई जारी रख सकते हैं या फिर उन्हें भारत भेज दिया जाएगा। इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि उन्हें एफ-1 वीजा मिल ही जाए, जिससे लोगों में बेचैनी बढ़ गई है। अगर वे भारत लौटने का विचार करते हैं, उन्हें एकदम नए माहौल में खुद को ढालने में दिक्कत हो सकती है क्योंकि उनमें से कई छोटी उम्र में अमेरिका में बस गए थे।

उनकी समस्या की जड़ ग्रीन कार्ड के लिए इंतजार करना है। हर साल अमेरिका नौकरीपेशा लोगों के लिए 1.40 लाख ग्रीन कार्ड जारी करता है और हर देश को 7 प्रतिशत ही जारी किया जाता है। अमेरिका में भारतीयों की भारी संख्या को देखते हुए प्रतिबंधात्मक नीति ने चुनौती पेश कर दी है।

न्यू यॉर्क में एक इमिग्रेशन लॉ फर्म चलाने वाले साइरस मेहता ने कहा, ‘दूसरे देशों में पैदा होनेवालों की अपेक्षा, जिनका जन्म भारत में हुआ है, वे दशकों पुराने बैकलॉग झेल रहे हैं। अन्य देशों के लोगों को एच-1बी वीजा का टर्म समाप्त होने के भीतर ही ग्रीन कार्ड मिल जाता है, लेकिन भारतीयों के साथ ऐसा नहीं होता।’

अप्रैल 2018 में 6.32 लाख भारतीय नौकरी के आधार पर ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे थे। अमेरिकी थिंक-टैंक कैटो के मुताबिक, ‘अमेरिकी कंपनियों में काम करने वाले भारतीय, जो 2018 में वेटिंग लाइन में शामिल हुए, उन्हें 50 साल इंतजार करना पड़ सकता है।’ ये भारतीय ईबी2 और ईबी3 वीजा कैटिगरी में हैं। ईबी2 अडवांस कैटिगरी और ईबी3 बैचलर डिग्री वालों को दिया जाता है।

एमटेक कर रहे ओहायो निवासी एक स्टूडेंट ने कहा, ’21 साल का हो जाने पर, मैंने सोचा नहीं था कि यह मुझे प्रभावित करेगा-यह मेरा इमिग्रेशन स्टेटस है।’ वहीं, उसकी बहन जो अमेरिका में जन्म लेने के कारण अमेरिकी नागरिक है, उसके साथ यह दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन सच्चाई यह भी है कि सभी एच-1बी पैरंट्स के बच्चों का अमेरिका में जन्म नहीं होता।

छात्र ने बताया कि जब वह 7 साल का था उसके पैरंट्स अमेरिका आ गए। उसने कहा, ‘मैंने ग्रैजुएट स्कूल के लिए आवेदन दिया। मुझे इंटरनैशनल स्टूडेंट बताया गया। पढ़ाई पूरी होने पर, मुझे एक एलियन की तरह ट्रीट किया जाएगा और मुझे सिर्फ कठिन एच-1बी वीजा लॉटरी सिस्टम के तहत ही यहां नौकरी मिलेगी।’

वहीं, नॉर्थ वर्जीनिया के एक स्टूडेंट ने बताया कि जब वह 10 साल का था पैरंट्स अमेरिका में बस गए थे। उसने कहा, ‘मेरे पिता ने छह साल पहले पीआर के लिए आवेदन दिया था, लेकिन हमारे स्टेटस में कोई बदलाव नहीं आया है, न ही जल्द आने वाला है। इसने समस्या खड़ी की है, अंडर ग्रैजुएशन के आखिरी साल में मैं डिपेंडेंट वीजा पर निर्भर नहीं रहूंगा और इंटरनैशनल स्टूडेंट वीजा के लिए आवेदन दूंगा।

Related posts

सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने वाली पहली महिला को सास ने पीट-पीट कर पहुंचाया अस्पताल

mahesh yadav

शमशाद ने रौशन की एसिड अटैक पीड़िता शबीना की जिंदगी…

Anuradha Singh

इस दिन आ सकता है CBSE 10th और 12th का Results, ऐसे करें चेक

Rahul