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गांधी के सभी आंदोलन भारतीयता को आज भी मजबूत करते हैं: विनोद शंकर

GANDHI 1 गांधी के सभी आंदोलन भारतीयता को आज भी मजबूत करते हैं: विनोद शंकर

लखनऊ। उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि के तत्वावधान में शुक्रवार  को गांधी स्वाध्याय गोष्ठी आयोजित की गई। जिसका विषय वर्तमान राजनीतिक पटल पर गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता थी।

महात्मा गांधी के विचारों के प्रति समर्पित मुख्य वक्ता केडी सिंह ने कहा कि विश्व पटल पर गांधी का अभ्युदय एक महान घटना है। गांधी को दो रूप में जाना जाता है, एक आध्यात्मिक राजनेता व दूसरा अध्यात्मवेत्ता।

उन्होंने कहा कि राजनीति की चर्चा अगर होगी तो लोकतंत्र का विचार स्वतः मन में उठता है। गांधी के अनुसार लोकतंत्र में हिंसा का स्थान नहीं है। लोकतंत्र का आधार ही अहिंसा है। धर्म मनुष्य को नैतिक बनाता और सदाचारी बनाता है। सत्य बोलना, चोरी न करना, परोपकार, परदुखकातरता, दूसरों की सहायता, प्रेम व करुणा सभी धर्म सिखाते हैं। जहां समानता, समरसता, बंधुत्व, अहिंसा युक्त समाज का सृजन होगा सही मायने में लोकतंत्र पल्लवित एवं पुष्पित होगा।

गांधी चिंतन के अध्येता विनोद शंकर चौबे ने कहा कि गांधी के विचार में राजनीति में मानव जीवन के सभी आयाम सन्निहित हैं। इसलिए उनका कथन था कि मानवता से एकाकार हुए बिना राजनीति संभव नहीं। राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए गांधी के नेतृत्व में सभी आंदोलन भारतीय राष्ट्रीयता को सुदृढ़ करने व एक समतायुक्त समाज की रचना के लिए थे।

उन्होंने कहा कि श्रीमती नायडू ने उचित ही कहा था गांधी भारतीय राष्ट्र के सशरीर प्रतीक, जीवंत बलिदान और धार्मिक पवित्रता के एकल अवतार थे। अनवरत गांधी अछूतोधार, हिंदू-मुस्लिम एकता, स्वदेशी, विदेशी वस्तुओं व वस्त्रों का त्याग, अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियों का त्याग, अंग्रेजी सरकार के विद्यालयों व न्यायालयों का बहिष्कार, सनातनता व सामाजार्थिक  न्याय के लिए आंदोलनरत रहे।

जाति, संप्रदाय व समुदाय के आधार पर राजकीय सेवाओं में चयन के विरोधी थे और योग्यता को ही चयन का आधार मानते थे। साहित्य व कला आत्मा के सौंदर्य को व्यक्त करने का माध्यम मानते थे। गांधी ने कहा मानव मात्र का हित ही सर्वोच्च है और इसलिए उद्योगपतियों द्वारा धन अर्जन हेतु अंधाधुंध मशीनीकरण को बढ़ावा देकर मानव श्रम को कमजोर करना व श्रम का बहिष्कार करना उचित नहीं है।

श्री चौबे ने कहा कि यदि गांधी की यह सीख मानी जाती तो भारी संख्या में  कोरोना महामारी के काल में श्रमिक बेरोजगार नहीं होते और महामारी फैलाने के माध्यम नहीं बनते। खेद है कि भारतीय राजनीति गांधी के विचारों को आत्मसात न कर किसान आंदोलन, सत्ता की लिप्सा हेतु निर्वाचनों की प्रक्रिया में संलिप्त व विरोधी राजनीति राष्ट्रीय विखंडन की प्रवृतियों की ओर गतिशील है।

उन्होंने कहा कि पूरे राष्ट्र को सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर कोरोना महामारी से त्राण पाने के लिए समर्पित होना चाहिए। ज्योतिबा फुले व भारत रत्न डॉक्टर अंबेडकर का स्मरण करते हुए प्रथम अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन जिसे 12 अप्रैल 1961 को अंतरिक्ष में भेजा गया था,  108 मिनट में धरती का चक्कर लगाने के बाद की उक्ति कि दुनिया इंसानों के झगड़े के लिए बहुत छोटी है। परंतु, सहयोग के लिए बहुत बड़ी के आशय को स्वीकार करते हुए मानव कल्याण के लिए राष्ट्र व विश्व को एकमत होने की कामना करते हुए गोष्ठी का समापन किया गया।

इस अवसर पर कोरोना महामारी से दिवंगतों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गोष्ठी में गांधी चिंतन के विद्वान नीलम भाकुनी, के पी मिश्रा, आशुतोष निगम, अर्जुन सिंह, सर्वेश कुमार गुप्त, धनंजय राय, ओसामा,  हीरालाल व गांधी भवन के प्रबंधकों व सचिव लाल बहादुर राय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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