संवाददाता, लखनऊ। लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन अब जल्दबाजी का सौदा प्रतीत होता साबित हो रहा है। अखिलेश यादव ने कहा कि मायावती ने भले ही यह गठबंधन तोड़ दिया हो लेकिन उनके प्रति सम्मान वैसे ही रहेगा जैसा कि पहले था।
भाजपा को हराने की रणनीति के तहत किए गए गठबंधन से अखिलेश-मायावती और अजीत सिंह ने जो भी कुछ सोचा था उसमें कामयाबी नहीं मिली। सियासी पंडितों ने सिर्फ मायावती को फायदे में बताया था जो सत्य प्रतीत हो रहा है। भाजपा को तो रोक नहीं पाए उल्टे घर की सीटें भी हार गए। ऊपर से बसपा सुप्रीमो ने यादव वोट पर उनकी पकड़ मजबूत न होने की तोहमत मढ़ते हुए अखिलेश यादव के नेतृत्व व सियासी क्षमता पर भी सवाल खड़ा कर दिया।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने यह कहते हुए बसपा को जवाब देने की कोशिश की है कि सपा के वोट ट्रांसफर न हुए होते तो बसपा 10 सीटें न जीत पातीं। मायावती ने कहा है कि उनके निजी रिश्ते बने रहेंगे।
अखिलेश बेहतर कर पाए तो वह साथ काम करने की सोचेंगी, उन्होंने यह साबित किया कि वह तो इस गठबंधन को चलाना चाहती थीं लेकिन अखिलेश उनकी बराबरी में कहीं पर नहीं ठहरते, इसलिए वह अलग हो रही हैं। मायावती के जवाब में प्रो. रामगोपाल व अखिलेश यादव के जैसे बयान आए हैं उससे भी अब इस गठबंधन के आगे बने रहने की उम्मीद नहीं है।
अखिलेश यादव ने भी पलटवार करते हुए कहा कि यह एक प्रकार का प्रयोग था असफल हो गया कोई बात नहीं। आगे से नई रणनीति बनेगी और समाजवादी राजनेताओं को आगे लाया जाएगा।
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