वर्ष 2001 के संसद हमले के दौरान जब सोनिया गांधी अपने आवास पर पहुंच चुकी थी।तब उन्हें संसद हमले का पता चला जिसके बाद तुरंत सोनिया ने सबसे पहला फोन अटल बिहारी वाजपेयी को किया और उनसे पूछा कि वो सुरक्षित तो हैं न। जिसके जवाब में अटल जी ने कहा कि मेरा छोड़िए, आप बताएं कि आप ठीक हैं या नहीं। आपको बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी लगातार विपक्ष में रहे लेकिन कभी उनके व्यक्तिगत संबंध बुरे नही रहे। उनका मानना था कि वैचारिक ममतभेद हो सकते है लेकिन व्यक्तिगत मतभेद नही होना चाहिए।इसी कारण आज उनके निधन पर पूरा विश्व उन्हें श्रृद्धांजलि दे रहा है।
जानिए क्यों, संसद में अरुण जेटली ने पीएम मोदी से हाथ मिलाने से किया मना?
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संसद की कार्यवाही को 40 मिनट के लिए रोक दिया गया था
13 दिसंबर 2001 भारत के इतिहास का बेहद खराब दिन रहा था। जब आतंकियों ने सुनियोजित तरीके से संसद पर हमले की घटना को अंजाम दिया था। लेकिन अच्छी बात ये रही कि आतंकवादी अपने मंसूबे को योजना के अनुसार अंजाम नहीं दे सके।संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संसद की कार्यवाही को 40 मिनट के लिए रोक दिया गया था। उस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकलकर अपने सरकारी आवास की और निकल चुके थे। इस दौरान लाल कृष्ण आडवाणी ही मंत्रियों और करीब 200 सांसदों के साथ लोकसभा में थे ।
संसद भवन के गार्ड, दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग शहीद हुए थे
आतंकी हमले में संसद भवन के गार्ड, दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग शहीद हुए थे। सफेद एंबेसडर कार में आए पांच आतंकवादियों ने 45 मिनट में भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से हताहत करके पूरे हिंदुस्तान हिला दिया था।सत्ता से टकराते रहे, मुद्दे उठाते रहे। सरकार की नीतियों से मतभेद रखते रहे. एक बार जब उन्हें पूर्व पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू की बात सही नहीं लगी और उन्हें सदन में बोलने का मौका मिला तब उन्होंने अपनी नाराजगी को वहां मौजूद सभी नेताओं के बीच में रखा।
नेहरू ने अटल की तारीफ की और कहा कि आज का भाषण बड़ा जबरदस्त रहा
अटल ने पंडित नेहरू से यहां तक कहा था कि उनके अंदर चर्चिल भी है और चैंबरलिन भी है। लेकिन नेहरू इस पर नाराज नहीं हुए। उसी दिन शाम को किसी बैंक्वट में दोनों की फिर मुलाकात हुई तो नेहरू ने अटल की तारीफ की और कहा कि आज का भाषण बड़ा जबरदस्त रहा। उनका कहना था कि वह राजनीति का एक ऐसा दौर था जहां सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे। और नेताओं की बातों को गंभीरता से लेते थे।