पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर तनाव अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि चीन अब जापान के साथ द्वीपों को लेकर उलझता नज़र आ रहा है।
नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर तनाव अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि चीन अब जापान के साथ द्वीपों को लेकर उलझता नज़र आ रहा है। सैन्य विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि विस्तारवादी मानसिकता को संजोने वाला चीन अब पूर्वी चीन सागर में भी जापान के साथ द्वीपों को लेकर उलझ सकता है। जापान ने एक द्वीप श्रंखला के पूर्ण एकीकरण की कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिस पर चीन की लंबे समय से नजर रही है। ऐसे में अगर जापान से चीन ने बैर मोल लेने की कोशिश की तो इसमें अमेरिका जरूर शामिल होगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जापान के ओकिनावा प्रान्त में इशिगाकी नगर परिषद ने विवादित द्वीप श्रृंखला को कवर करने वाले एक प्रशासनिक क्षेत्र का नाम बदलने के लिए एक विधेयक पारित किया। जो टोक्यो के दक्षिण-पश्चिम में 1,931 किलोमीटर दूर सेनकाकू नामक निर्जन द्वीप समूह पर जापान के नियंत्रण को मजबूत करता है। चीन और जापान दोनों ही इन निर्जन द्वीपों पर अपना दावा करते हैं। जिन्हें जापान में सेनकाकू और चीन में डियाओस के नाम से जाना जाता है। इन द्वीपों का प्रशासन 1972 से जापान के हाथों में है। लेकिन उनकी कानूनी स्थिति अब तक कुछ विवादित रही है। वहीं, चीन का दावा है कि ये द्वीप उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं और जापान को अपना दावा छोड़ देना चाहिए।
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नगर परिषद द्वारा विधेयक पारित किए जाने से पहले, बीजिंग ने द्वीप श्रंखला की यथास्थिति में किसी भी बदलाव के खिलाफ टोक्यो को चेतावनी दी थी। बीजिंग ने जापान से चार-सिद्धांत की सहमति की भावना का पालन करने, दिया ओयुस द्वीप मुद्दे पर नई घटनाओं को बनाने से बचने और पूर्वी चीन सागर की स्थिति की स्थिरता को बनाए रखने के लिए व्यावहारिक कार्रवाई करनेका आग्रह किया।
हालांकि जापान में नगर परिषद ने कहा कि विधेयक प्रशासनिक प्रक्रियाओं की दक्षता में सुधार करने के लिए आवश्यक है। सेनकाकू या डियाओस द्वीपों की रखवाली वर्तमान समय में जापानी नौसेना करती है। अप्रैल के बाद से, चीनी जहाजों को जापानी तट रक्षक द्वारा सेनकाकू के करीब पानी में देखा गया है। चीनी जहाजों की संख्या पिछले कुछ हफ्तों में बढ़ी है। इस दिन नगर परिषद द्वारा बिल पारित किया गया था, उस दिन यहां चार चीनी जहाज देखे गए थे।
जापान और अमेरिका में 1951 में सेन फ्रांसिस्को संधि है जिसके तहत जापान की रक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की है। इस संधि में यह भी बात लिखी है कि जापान पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा। इस कारण अगर चीन कभी भी जापान पर हमला करता है तो अमेरिका को इनके बीच आना पड़ेगा। जापान के कैबिनेट सचिव ने पिछले हफ्ते दोहराया कि सेनकाकस टोक्यो के नियंत्रण में है और यह क्षेत्र निर्विवाद रूप से ऐतिहासिक और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत जापान का है।