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42 साल बाद देश के 13 लाख कर्मचारी 11 से करेंगे 7 वें वेतनमान का विरोध

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नई दिल्ली। देश में 42 साल के बाद एक बार फिर ऐसा दौर आया है कि केन्द्रीय कर्मचारी सातवें वेतनमान के लागू होने के बाद भी नाराज हैं और उन्होंने केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इससे पहले 1974 में कांग्रेस के शासनकाल में बोनस की मांग को लेकर रेलवे कर्मचारियों ने देश व्यापी हड़ताल की थी और ट्रेनों के पहिए थम गए थे। इंदिरा गांधी की सरकार झुकी और मांग पूरी हुई। अब रेलवे के कर्मचारी एक बार फिर भाजपा के मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रहे हैं।

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केन्द्र सरकार के सातवें वेतनमान में किए गए संशोधन और अपेक्षित फायदे तथा मांगों की अनदेखी को लेकर देश के 32 लाख कर्मचारी हड़ताल पर होंगे। इसमें से 13 लाख कर्मचारी रेलवे के हैं जो 42 साल के बाद हड़ताल पर इस वृहद पैमाने पर जाएंगे। नेशनल ज्वाइंट काउंसिल के चेयरमैन और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे के अध्यक्ष एम राघैया ने इस बात का ऐलान किया है कि केन्द्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु के समक्ष फेडरेशन ने अपनी समस्या रखी थी

लेकिन मंत्री से आश्वासन मिला लेकिन प्रधानमंत्री से कोई राहत नहीं मिली। बताया गया कि सातवें वेतनमान में केन्द्रीय कर्मचारियों को किसी तरह की राहत नहीं है वहीं मिनिमम वेज प्रदान करने में सरकार फेल रही। हमारी मांग थी कि नए पेंशन नियम को रद्द किया जाए। रेलवे एक वर्किंग यूनिट है, इसका दूसरे से कोई तुलना नहीं है। बावजूद इसके सरकार ने हमारी बातों पर ध्यान नहीं दिया। इसके चलते ही ज्वाइंट फेडरेशन ने संघों से चर्चा कर रेलवे में हड़ताल का निर्णय लिया है।

रेलवे में देश व्यापी हड़ताल होने से प्रतिदिन करीब दो करोड़ सत्तर लाख यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। देश भर में करीब 21 हजार ट्रेनों के पहिए थमेंगे। मालूम हो कि भारतीय रेल को 17 जोन में सात प्रोडेक्शन यूनिट में बांटा गया है। सभी संघों और फेडरेशन के संयुक्त सहमति के बाद इतना बड़ा निर्णय लिया गया है।
मालूम हो कि रेलवे कर्मचारियों ने इंदिरा गांधी शासित कांग्रेस पार्टी के कार्यकाल के दौरान 1974 में आल इंडिया रेलवे मेन्स के प्रेसिडेंट रहे जार्ज फर्नान्डीस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों ने बोनस की मांग को लेकर आंदोलन खड़ा किया था। इस दौरान देश भर में रेल के पहिए बीस दिन तक थमे रहे। विरोध के दौरान सरकार ने रेलवे के हजारों कर्मचारियों को जेल भेजा और उन्हें नौकरी से हाथ गंवाना पड़ा। 27 मई 1974 को जब सरकार ने रेलवे कर्मचारियों की मांग को माना तो आंदोलन समाप्त हुआ।

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