Brij Nandan
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे। संघ में कार्य करने के बाद वह जनसंघ में गये थे। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री बने। उत्तर प्रदेश में वह पिछड़ों के बड़े नेता थे लेकिन उन पर जातिवाद को आरोप कभी नहीं लगा। उनकी पहचान प्रदेशभर में ही नहीं बल्कि देशभर में एक हिन्दू नेता के तौर पर रही।
मुठभेड़ में अपराधियों की जाति देखकर मारने या बचाने के आरोप या फिर फर्जी मुठभेड़ के पीड़ितों की जाति देखकर मुआवजा देने या न देने के आरोप कल्याण सिंह पर कभी नहीं लगे।
कल्याण सिंह का मानना था कि सिर्फ सत्ता की कामना से की गयी राजनीति आदर्शहीन होती है और नेताओं का प्रेरणास्रोत सत्ता और सुविधा की आकांक्षा भर होती है। अवसरवादी राजनीति ने जातीय भावना, क्षेत्रीयता,भाषावाद और जातिवाद का बड़ी बेशर्मी से दोहन किया है। जनता की भावनाएं गैर जरूरी मुद्दों पर भड़काई जाती हैं।
परिणाम यह होता है कि दिशाहीन राजनीति का विस्तार। राजनैतिक व्यवहार में पारदर्शिता का अभाव है और राजनैतिक उत्तरदायित्व की भावना से कोसों दूर है। इसी का परिणाम है राजनीति में अपराधियों का प्रवेश। इस राजनीतिक संस्कृति ने देश के संवैधानिक ढ़ांचे को खोखला कर दिया है। राजनीति की बढ़ती अविश्वसनीयता हमारी मौजूदा राजनीति का सबसे बड़ा संकट है। किसी देश की राजनीति की गुणवत्ता उस देश की जनता की खुशहाली ,सामाजिक आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है।
कल्याण सिंह सरकार में मंत्री रहे हैदरगढ़ से विधायक वैजनाथ रावत ने कहा कि हमारा सौभाग्य रहा कि हमें उनके साथ काम करने का अवसर मिला। राम मंदिर आन्दोलन के दौरान हमें उनके साथ काम करने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं की वह चिंता करते थे। पार्टी का साधारण कार्यकर्ता भी उनके मुख्यमंत्री रहते उनसे मिल कर अपनी बात कह सकता था। वह सबके अपने लगते थे। वह किसी एक जाति के नेता नहीं थे अपितु वह सर्व समाज के नेता थे।