नई दिल्ली। देश से भ्रष्टाचार को खत्म कर ईमानदारी के साथ राज करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी का आज ही के दिन 26 नवंबर 2012 को गठन हुआ था। आम आदमी पार्टी को बने महज पांच साल ही हुए है, लेकिन उसकी लोकप्रियता इतने कम समय में ही देश-विदेश में व्यख्यात हो गई थी। जब पार्टी के मुखिया अरविंद केजरिवाल ने आम आदमी पार्टी की नींव रखी थी तब उनकी विचारधारा थी बदलाव की राजनीति, ईमानदारी और आम आदमी की आवाज, लेकिन दिल्ली राज्य की सत्ता में आने के बाद और पंजाब में मुख्य विपक्षी दल बनने के बाद तो मानों पार्टी अपनी इस विचारधारा को भूल ही गई है और महज पांच साल में आम रहने का दम भरने वाली पार्टी कब आम से खास हो गई पता ही नहीं चला। प्रशांत भूषण, प्रो. आनंद कुमार और योगेंद्र यादव जैसे लोगों द्वारा गठित जिस पार्टी पर लोगों ने भरोसा करते हुए बदलते भारत का सपना देखा उन्ही नेताओं ने अब इस पार्टी से अलग होकर अपनी अलग राह पकड़ ली है।
आम आदमी पार्टी के नेता, विधायक और मंत्री जो कल तक आम आदमी बनने का दम भरते थे, जो कहते थे कि हम मंहगी कारे नहीं खरीदेंगे, सरकारी बगंले में नहीं रहेंगे। आज वहीं नेता और विधायक, सासंद महंगी-मंहगी कारों में घूम रहें हैं, बड़े-बड़े फार्म हाउस में पार्टी की बैठक का आयोजन करते हैं और बिना मतलब के सरकारी खर्च पर विदेशों की यात्रा कर रहे हैं। वीवीआई कल्चर को खत्म करने का वादा करके सत्ता में आई आम आदमी पार्टी के नेता और विधायक अब जनता के साथ वैसा ही सलूख कर रहे है जैसा अन्य पार्टी के नेता करते हैं यहीं नहीं एक एक करके पार्टी के सब मंत्री बेनकाब हो रहे है खुद पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरिवाल पर भ्रष्टाचार के दो-दो आरोप लगे हुए है, जिसे किसी और ने नहीं बल्कि करावल नगर से पार्टी विधायक कपिल मिश्रा ने लगाया है।
दिल्ली विधानसभा के फरवरी 2015 में हुए चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी पहली ऐसी पार्टी बनकर उभरी जिसने इतने बड़े पैमाने पर विजय प्राप्त की। दिल्ली की सत्ता में पार्टी के लगभग तीन साल के कार्यकाल में पार्टी के 18 विधायकों पर एफआईआर दर्ज हो चुकी है,जिनमें से 12 विधायक अलग-अलग मामलों में गिरफ्तार हो चुके हैं। खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरिवाल पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मानहानी के दो-दो मुकदमें दर्ज किए हुए है, जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। पार्टी से लोगों का मोहभंग तभी से होना शुरू हो गया था जब एक फैसले को लेकर प्रशांत भूषण, प्रो. आनंद कुमार और योगेंद्र यादव को पार्टी से बाहर कर दिया गया और शाजिया इल्मी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई थी।
इसी के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरिवाल के अपना कामकाज छोड़कर केंद्र सरकार के मंत्रियों और पीएम मोदी को कोसना भी लोगों को रास नहीं आया। तभी तो दिल्ली में 67 सीटें जीतने वाली पार्टी की राजौरी गार्डन उप चुनाव में जमानत तक जब्त हो गई और तो और पार्टी को साल 2017 में दिल्ली के निकाय चुनाव में भी मुंह की खानी पड़ी। दूसरी तरफ पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कुमार विश्वास जैसे लोग अब पार्टी में अपना वजूद स्थापित करने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। पार्टी अब कुछ खास लोगों के हाथों में है। उन्हीं के हिसाब से सब कुछ चलता है। पार्टी को इस मुकाम तक लाने वाले कार्यकर्ता पार्टी से दूर हो रहे हैं।