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ग्राउंड रिपोर्ट: ए के शर्मा के गांव वालों ने जो कहा, वो पूर्वांचल की हकीकत है

AK Shamra ग्राउंड रिपोर्ट: ए के शर्मा के गांव वालों ने जो कहा, वो पूर्वांचल की हकीकत है
  • गांव के लोग बोले- शर्मा जी त अभईं एमएलसी बनलन त सब रोड बन गईल, बड़ जिम्मेदारी मिली त हमनी के किस्मत बदल जाई

मऊ (भारत खबर एक्सक्लुसिव)। बाबू..आज हमार उमर 70 साल से ज्यादा उपर के बा… इ जवन रोड देखत हवा न एकर त किस्मते फूटल रहल, विकास के नाम पर एगो चवन्नी ना मिलल… लेकिन जइसहीं शर्मा बाबू विधायक बनलन त सब एकदम बदल गईल… इ रोड पक्का हो गईल… एतना बड़ा गांव ह आ सबके घरे लाइट लग गइल बा… लाइन त अब हमेशा रहेले… ये उद्गार भारत खबर से व्यक्त किया मऊ जिले के काझा खुर्द के एक बुजुर्ग ने। मऊ के साथ काझा खुर्द आज पूरे यूपी में चर्चा का केंद्रबिंदु बना हुआ है, और इसका कारण हैं पूर्व आईएएस व भाजपा एमएलसी अरविंद कुमार शर्मा यानी ए के शर्मा।

यूपी की सियासत में दिलचस्पी लेने वाला शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो आज की तारीख में ए के शर्मा के नाम से परिचित नहीं होगा। जी हां हम उसी ए के शर्मा की बात कर रहे हैं, जिनका नाम यूपी में करीब एक साल से छाया हुआ है।

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मऊ स्थित ए के शर्मा का घर
गांव वालों को दिखी उम्मीद की किरण

ए के शर्मा के गांव के लोग कहते हैं कि सालों बाद विकास का खाका तैयार हुआ है। गांव के युवा पंकज शर्मा कहते हैं कि जबसे होश संभाला है और राजनीति को समझने का प्रयास किया है तबसे सिर्फ वादे ही मिले हैं। पूरे जिले को ए के शर्मा के कारण न सिर्फ पहचान मिली है बल्कि विकास की कई परियोजनाएं आईं हैं।

60 साल के बुजुर्ग रमाकांत यादव बताते हैं कि सरकारें आईं और चली गईं। उनके वादे और दावे सुनते-सुनते पूरी उम्र बिता दी लेकिन गांव की ये सड़क नहीं बनी। ए के शर्मा के आते ही पूरी 15 किमी की सड़क पक्की बन गई।

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ए के शर्मा के प्रयास से बनी सड़क

30 वर्षीय शिवा कहते हैं कि बिजली, पानी और सड़क की मूलभूत जैसी समस्याओं के लिए हम लोग डीएम तक के चक्कर लगाते थे लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती थी। अब तो हर दूसरे दिन जिले का कोई न कोई बड़ा अधिकारी आता है और लोगों की समस्याएं सुनता है। हमारी समस्याओं का त्वरित समाधान होता है।

35 वर्षीय सीमा गौतम कहती हैं कि कोरोना के कहर से जब सभी ओर त्राहिमाम मचा था, उस समय हमारे गांव में डॉक्टरों की टीम आती थी। हर घर में दवाएं दी जाती थीं। यही कारण है कि कोरोना से एक भी मौत हमारे गांव में नहीं हुई।

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कौन हैं ए के शर्मा

हालांकि ए के शर्मा का नाम नया नहीं है लेकिन उनके बारे में बता दें कि वो पीएम मोदी के खास सिपहसालारों में से एक थे। नौकरशाही की उनकी योग्यता को देखते हुए मोदी ने उन्हें यूपी भेजा। लेकिन, यूपी में नौकरशाह बनाकर नहीं बल्कि शासक बनाकर। कहा गया कि बेलगाम हो चुकी यूपी की नौकरशाही पर नकेल कसने में ए के शर्मा महत्वपूर्ण कड़ी साबित होंगे।

चूंकि, उन्हें पीएम मोदी का करीबी बताया जाता है तो बड़ी जिम्मेदारी भी मिलनी तय थी। उन्हें सबसे पहले एमएलसी बनाया गया और उसके बाद सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी कि जल्द ही वो उपमुख्यमंत्री भी बनाए जाएंगे। लेकिन, सियासत का खेल देखिए अभी तक ए के शर्मा योगी की कैबिनेट का हिस्सा नहीं बन पाए हैं।

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हालांकि, आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए योगी के कैबिनेट में बदलाव की अटकलें चल रहीं हैं। इस बीच पार्टी के बीच मतभेद की भी खबरें हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एक बार फिर ए के शर्मा को बड़ी जिम्मेदारी मिलने की बात कही जा रही है और वे दिल्ली में डेरा जमा चुके हैं।

मऊ के छोटे से गांव से लेकर पीएमओ व लखनऊ में धमाल

ए के शर्मा मऊ जिले के रानीपुर ब्लाक के काझा खुर्द के रहने वाले हैं। उनके पिता शिवमूर्ति शर्मा रेलवे में अधिकारी थे। तीन भाईयों और चार बहनों में सबसे बड़े ए के शर्मा ने प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल से की और मऊ के ही डीएवी कॉलेज से हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा पास की। आगे की पढ़ाई के लिए वे कई शहरों में रहे। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के ए के शर्मा आईएएस बने और अपनी काबिलियत के दम पर मोदी के सबसे खास सिपहसालारों में से एक बने।

परिवार में पहले राजनीतिज्ञ

ए के शर्मा के परिवार का राजनीति से दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं है। उनके भाई अरूण शर्मा बताते हैं कि भैया पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो राजनीति में आए हैं। वे सभी भाई नौकरी कर रहे हैं। बहनें भी सेटल हैं। पापा भी रेलवे में थे। अरूण शर्मा ने बताया कि परिवार का कोई दूसरा व्यक्ति राजनीति में नहीं आएगा।

गांव वालों को उम्मीद, मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी तो संवरेगी किस्मत

ए के शर्मा के गांव वालों को उम्मीद है कि एक दिन ए के शर्मा को यूपी सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। उसके बाद मऊ समेत पूर्वांचल के विकास का खाका खिंचा जाएगा। हालांकि उनके परिवार वालों का कहना है कि विकास के लिए पद नहीं हिम्मत चाहिए। उन्हें किसी भी पद की लालसा नहीं है। जो पार्टी जिम्मेदारी देगी, उससे ही वे खुश हैं। लेकिन, बड़ी जिम्मेदारी मिलती है तो विकास का खाका तैयार करने में और आसानी होगी।

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