देहरादून। एक तरह विकास को तरस रहा प्रदेश है तो दूसरी तरह अपनी जरूरतों के लिए तरह हरे कर्मचारी लेकिन सूबे की सरकार के जिम्मेदारों ने बीते 5 सालों में विकास के नाम पर ऐसा खेल प्रदेश में हुआ है कि सुनने के बाद पैरों तले जमीन का सरकना लाजमी है। मामला है कि उत्तराखंड राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड की ओर से उत्तरप्रदेश की कार्यदायी संस्था यूपीआरएनएन को सूबे में विकास के कई बड़े प्रोजेक्ट और काम सौंपे गए थे। इस निर्माण के कामों में सूबे ने अपनी इस कदर मेहरबानी दिखाई की 800 करोड़ का घोटाला हो गया। अब जब 2012 से 2017 तक की आडिट रिपोर्ट आई है तो अधिकारी बंगले झांक रहे हैं। हांलाकि अभी आडिट जारी है, लेकिन अब तक कि रिपोर्ट ने सभी को हैरान कर दिया है। इतना बड़ा घपला सामने आने के बाद मुख्य सचिव उत्पल सिंह ने संबंधित महकमें को तकनीकि जांच कराने के निर्देश दिए हैं।
आडिट होने पर पता चला कि नियमों के लिए जाने जाने वाले उत्तराखंड में किस तरह नियमों और कायदों की धज्जियां उड़ा कर 800 करोड़ का बड़ा घपला किया गया है। आडिट में सामने आई बातों को देखा जाए तो बीते 5 सालों में वर्क मैनुवल को अंदेखा कर करीब 650 करोड़ का घपला किया गया है। जिसमें सेंटजे के तौर पर 100 की धनराशि वसूली गई है। इतना ही नहीं ब्याज और अवशेष में बची 50 करोड़ की राशि तो संस्था ने खुद ही दबा ली है। अब इस आडिट रिपोर्ट के बाद मुख्य सचिव ने संबंधित विभाग को धनराशि की गणना विभागीय स्तर पर कराने के निर्देश आनन-फानन में जारी कर दिए हैं। मुख्य सचिव का कहना है कि गणना के बादज उक्त राशि यूपीआरएनएन से वसूलने की कार्रवाई की जाएगी।
वैसे तो इस बात की जानकारी सत्ता में आते ही भाजपा की जीरो टॉलरेंस की सरकार को हो गई थी। पिछली सरकार के कार्यकाल में किस तरह से विकास के नाम पर जनता को ठगा गया था। लेकिन ठगी हुई कैसे थी इसका पता लगाने के लिए बाते मई में ही निगम के कामों को लेकर भाजपा ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए नए कार्यों पर देने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद सरकार ने बीते 5 सालों में निगम की ओर से किए गए कार्यों की विशेष आडिट करने के आदेश जारी किए थे। अब देखना है कि इस घपले की गाज गिरती किस पर है। वैसे देवभूमि पर लूटने में किसी विभाग ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन अब निजाम बदला तो नजरिया भी बदल रहा है।