नई दिल्ली/बीजिंग। राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी ने शुक्रवार को भारत और चीन के बीच लोग-केंद्रित भागीदारी के लिए आठ क़दमों की एक रूपरेखा पेश की। यह आठ क़दम हैं-आपसी विश्वास और सम्मान बढ़ाना, दोनों देशों के युवा वर्ग में आपसी सहयोग, एक दूसरे के फिल्म उद्योग और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना, बौद्धिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे कि चीन में योग और भारत में ताई ची और पारंपरिक चिकित्सा, पर्यटन को बढ़ावा देना, शहरीकरण, पर्यावरण और ‘डिजिटल डिवाइड’ की चुनौतियों से निपटना, अंतरराष्ट्रीय मंच पर विभिन्न विषयों पर आपसी सहयोग और आपसी व्यापार और वाणिज्य को बढ़ाना।
पेकिंग विश्वविद्यालय में ‘भारत-चीन संबंध : लोक-केंद्रित भागीदारी के लिए आठ क़दम’ के विषय पर अपने भाषण में राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व की आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत और चीन विकास के मार्ग पर अग्रसर रहे यद्यपि दोनों देशों की आबादी विश्व की जनसंख्या की लगभग 40 प्रतिशत है। क्षेत्रीय और वैष्विक सिथरता में भारत और चीन के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत और चीन का विश्व की शाक्तियों में शामिल होना तय है और इस कारण दोनों देशों का यह दायित्व है कि वह क्षेत्रीय और वैश्विक प्रगति के लिए कटिबध्द रहें।
राष्ट्रपति ने कहा कि दोनों देश हाथ मिलाने और पुनरुत्थान के लिए अवसर के द्वार पर खड़े हैं और एक सकारात्मक ऊर्जा और एक एशियाई सदी बनाने के लिए तैयार हैं परन्तु यह आसान कार्य नहीं होगा। बाधाओं को धैर्य के साथ हल करने की जरूरत है। दोनों देशों को इस सपने को साकार करने के लिए दृढ़ रहना चाहिए और एक टिकाऊ मित्रता के लिए हाथ मिलाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा भारत और चीन के बीच आपसी राजनीतिक समझ एक क़रीबी विकास साझेदारी के लिए महत्वपूर्ण है और इसे राजनीतिक संचार के माध्यम से विकसित किया जा सकता है। लोक-केंद्रित भागीदारी के लिए आपसी विश्वास का होना अनिवार्य जो आपसी है जो आपसी सम्मान और संबंधित राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था के द्वारा बन सकता है। यह तभी संभव होगा जब दोनों देशों के लोगों में आपसी संचार और सहयोग होगा। उन्होंने दोनों देशों के उद्यमियों से आह्वान किया कि वह संयुक्त रूप से व्यापार के लिए एक नया मॉडल बनाने के लिए प्रयास करें।